Wednesday 4 February 2015

भूख-प्यास मिटकर सहनशक्ति पैदा होगी

· जल तत्व - यह तत्व शरीरस्थ स्वाधिष्ठान चक्र में है । यह चक्र पेङु अर्थात् लिङ्ग (जननेन्द्रिय) के मुल में स्थित है । यह चक्र शरीर में भुवः लोक का प्रतिनिधि है और उसमें जल तत्व का निवास है ।
जल तत्व का रङ्ग श्वेत और आकृति अर्धचन्द्राकार होती है । इसका गुण रस है और कटु, तिक्त, अम्ल, कषाय आदि समस्त रसास्वाद इसी तत्व के कारण होते है । इसकी ज्ञानेन्द्रिय जीव्हा और कर्मेन्द्रिय लिङ्ग है । मोहादि विकार इसी तत्व के परिणाम है ।
ध्यान विधि - पृथिवी तत्व की ध्यान विधि में प्रदर्शित आसन में बैठकर -
वं बीजं वारुणं ध्यायेदर्धचन्द्रं शशिप्रभम् ।
क्षुत्पिपासासहिष्णुत्वं जलमध्येषु मज्जनम् ।।
अर्थात् वं बीजवाले, अर्धचन्द्राकार चन्द्रमा की तरह कान्तिवाले जलतत्व का चक्र में ध्यान करें । इससे भूख-प्यास मिटकर सहनशक्ति पैदा होगी और जल में अव्याहत गति हो जायेगी ।                                     योगियों ने ध्यानादि विशेष कार्यसाधन के लिए हमारे शरीर में अनेक चक्रों की कल्पना की है । उन चक्रों का विशेष उल्लेख पाठकों को अन्यत्र कही मिल सकता है, अतः विस्तार भय से हम यहाँ आवश्यक बातों का ही संक्षेप से उल्लेख करेंगे 

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