Saturday 7 February 2015

किसी के दर्द का जब तक कोई हिस्सा नहीं बनता, 
कभी विश्वास का तब तक कहीं रिशता नहीं बनता.
वो बादल क्यों न बन जाए, वो बारिश क्यों न हो जाए, 
समंदर का रुका पानी मगर दरिया नहीं बनता.
अगर इंसान के दिल भी दरख़्तों की तरह होते, 
परिंदों के लिए शायद कोई पिजरा नहीं बनता.
चमक तो एक दिन पत्थर में आ जाती है घिसने से,
मगर इस इल्म से पत्थर कभी शीशा नहीं बनता.
किसी तरतीव से ही शक्ल मिलती है लकीरों को,
लक़ीरें खींच देने से कोई नक़्शा नहीं बनता.
अगर संकल्प मन में हो तो जंगल क्या है दलदल क्या,
बिना संकल्प के कोई नया रस्ता नहीं बनता.

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