Saturday 1 November 2014

सभी इन्द्रियो से भक्ति रस पीने वाला

हिन्दू समाज में भागवत कथा का बहुत प्रचलन है ।
अधिकांश लोग इस पर पूरी श्रद्धा भी रखते हैं
तो कुछ विरोध भी करते हैं ।
दोनों का अपना अपना तर्क है ।
भागवत कब किसने लिखी ये बहस का विषय
नहीं है ।
भागवत कथा के वक्ता परमविरक्त शुकदेव जी हैं
और श्रोता राजा परिक्षित, जिसे मृत्यु
का समय पता है ।कुछ लोग कहते हैं कि इसमें काम
का भी वर्णन है ।अब एक विरक्त और एक मुमूक्षु
काम वर्णन क्यों करेगा और सुनेगा ? विरक्त
को काम में क्या रुचि और मुमूक्षु
को भी क्या लाभ उस कामकथा से ? यह विचार
करना चाहिए कोई निष्कर्ष निकालने से पहले ।
मोक्ष का सभी पात्र नहीं होता , न ज्ञान
का ही ।परिक्षित अर्थात देखा परखा , पात्र

अभी रासपंचाध्यायी पर संक्षिप्त चर्चा करेगे ।
इस अध्याय को बड़े बड़े कथाकार या तो छोड़
देते हैं या एक दो पंक्ति में इतिश्री कर देते हैं ।
भागवत के इस पाँच अध्याय में प्रसिद्ध
रासलीला का वर्णन है ।इस
रासलीला को शुकदेव जी कह रहे हैं , दर्शक
त्रिदेव, सिद्ध ऋषि मुनि देवगण आदि हैं ।
यदि काम रहता तो कामारि शिव क्यों रहते
वहाँ ।अस्तु
श्री कृष्ण योगेश्वर थे , गोपी का अर्थ है
सभी इन्द्रियो से भक्ति रस पीने वाला ।
परमात्मा को भी रस कहा गया है , इसी से रास
शब्द बना है ।शारीरिक उम्र श्री कृष्ण
की 11वर्ष थी और गोपिया हर उम्र की थी ।
बच्ची , किशोर, युवती , अधेड, बूढी ।भक्ति हर
उम्र में की जाती है ।गोपियो से संवाद के क्रम में
शरीर नहीं मन माँग ते हैं अर्थात शरीर
अपना कार्य करता रहता है और मन आराधना ,
भजन।यह योग की उच्च अवस्था में ही संभव है ।
इसका वर्णन गीता में भी है ।आगे श्री कृष्ण कहते
हैं कि तुम सब संसार छोडकर मेरे पास क्यों आई
हो? पति , बच्चे माता पिता आदि सब हैं
ही उनके साथ सुख भोगो ।
गोपिया नहीं मानती है और श्री कृष्ण
को ही पाने की जिद करती है ।अब ज्ञान चाहने
वाले को , ईश्वर चाहने वाले को और
क्या चाहिये (भागवत मे श्री कृष्ण ही ईश्वर हैं) ।
बहुत वाद विवाद हुआ , तब अंत में श्री कृष्ण पूछते हैं
कि आखिर तुम्हें चाहिये क्या ? तब सब कहती हैं
कि आप हमें अधरामृत का दान करिये ।अधरामृत
का लौकिक अर्थ चुम्बन होता है ।क्या कोई
भगवान से यही माँगेगा ? भगवान तो मुक्ति देते
हैं ।धरा अर्थात धरती का अमृत सांसारिक सुख
वैभव है ।अधरामृत अर्थात जो अलौकिक है ,
मोक्ष है ।

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