Wednesday 26 March 2014

प्रश्न : ध्यान क्यों? ध्यान किसलिए करते हैं?

प्रश्न : ध्यान क्यों? ध्यान किसलिए करते हैं?
उत्तर : अगर कोई आपसे पूछे कि आप किसी से प्यार क्यों करते हैं? तो क्या कहेंगे? आप कहेंगे कि प्रेम खुद में आनंद है। जरूरी नहीं कि इसका कोई कारण हो। प्रेम खुद में ही आनंद है। उसके बाहर और कोई कारण नहीं है जिसके लिए प्रेम किया जाए। अगर कोई किसी कारण से प्यार करता हो तो हम फौरन समझ जाएंगे कि गड़बड़ है, यह प्यार सच्चा नहीं है। मैं आपको इसलिए प्यार करता हूं कि आपके पास पैसा है, वह मिल जाएगा। तो फिर प्यार झूठा हो गया। मैं इसलिए प्यार करता हूं कि मैं परेशानी में हूं, अकेला हूं, आप साथी हो जाएंगे। वह प्यार भी झूठा हो गया। वह प्यार नहीं रहा। जहां कोई कारण है, वहां प्यार नहीं रहा, जहां कुछ पाने की इच्छा है, वहां प्यार की कोई गुंजाइश नहीं है। प्यार तो अपने आप में ही पूरा है। ठीक वैसे ही, ध्यान के आगे कुछ पाने को जब हम पूछते हैं- क्या मिलेगा? ऐसा सवाल हमारा लोभ पूछ रहा है। मोक्ष मिलेगा कि नहीं? आत्मा मिलेगी कि नहीं? नहीं, मैं आपसे कहता हूं, कुछ भी नहीं मिलेगा और जहां कुछ भी नहीं मिलता, वहीं सब कुछ मिल जाता है। जिसे हमने कभी खोया नहीं, जिसे हम कभी खो नहीं सकते, जो हमारे भीतर मौजूद है। अगर वह पाना है जो हमारे भीतर पहले से ही है तो कुछ और पाने की इच्छा का कोई मतलब नहीं हो सकता। सब पाने की इच्छा छोड़ कर जब हम मौन, चुप रह जाएंगे, तो उसके दर्शन होंगे जो हमारे भीतर हमेशा मौजूद है।

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