Monday 31 March 2014

बहुत लोग कहते हैं - ध्यान करना , ध्यान लगाना

बहुत लोग कहते हैं - ध्यान करना , ध्यान लगाना ..|
करना भी एक क्रिया हैं .. जब तक किया जा रहा हैं .. इसका अहसास हैं .. तब तक मनुष्य ध्यान की अवस्था में भी नहीं पहुच पाता हैं ...|

ध्यान हैं सब क्रियायो से छूट जाने का नाम .., जब मनुष्य का ध्यान में प्रवेश हो जाता हैं .. तब ध्यान की सघनता धीरे -धीरे .. बढती जाती .. हैं ..और मनुष्य समाधि में स्थित हो जाता हैं |

ध्यान -शरीर की मृत अवस्था का दुसरा नाम हैं , जहा शारीर नहीं होता .. सिर्फ मैं .. और मेरा मन होता हैं ...धीरे -धीर .. मैं और मन एक दुसरे में विलीन हो जाते हैं .. और शून्य आत्मा में प्रवेश होता हैं .. इस अवस्था को तुरिह भी कहते हैं |

यह ध्यान का तीसरा अवस्था हैं .. जहा .. मनुष्य को परमात्मा .. प्रथम उपहार देता हैं ...| बहुत से लोग .. ध्यान की प्रथम अवस्था या दुसरे चरण तक ही छूट जाते हैं ... तीसरा चरण .. हैं जाग्रति का .. परमात्मा के दर्शन का ... मिलन दूर हैं .. मगर ध्यान के तीसरे चरण में दर्शन उपलब्ध हो जाता हैं |

No comments:

Post a Comment