Monday 31 March 2014

मन में जब तक चिन्ताओ का कूड़ा- कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है

एक बार एक स्वामी जी भिक्षा माँगते हुए एक
घर के सामने खड़े हुए और उन्होंने आवाज
लगायी, भीक्षा दे दे माते!!
घर से महिला बाहर आयी। उसने उनकी झोली मे
भिक्षा डाली और कहा, “महात्माजी, कोई उपदेश
दीजिए!”
स्वामीजी बोले, “आज नहीं, कल दूँगा।” दूसरे
दिन स्वामीजी ने पुन: उस घर के सामने आवाज
दी – भीक्षा दे दे माते!!
उस घर की स्त्री ने उस दिन खीर बनायीं थी,
जिसमे बादाम- पिस्ते भी डाले थे, वह खीर
का कटोरा लेकर बाहर आयी। स्वामी जी ने
अपना कमंडल आगे कर दिया।
वह स्त्री जब खीर डालने लगी, तो उसने
देखा कि कमंडल में गोबर और कूड़ा भरा पड़ा है।
उसके हाथ ठिठक गए। वह बोली, “महाराज ! यह
कमंडल
तो गन्दा है।”
स्वामीजी बोले, “हाँ,
गन्दा तो है, किन्तु खीर इसमें डाल दो।”
स्त्री बोली, “नहीं महाराज, तब तो खीर ख़राब
हो जायेगी। दीजिये यह कमंडल, में इसे शुद्ध कर
लाती हूँ।”
स्वामीजी बोले, मतलब जब यह कमंडल साफ़
हो जायेगा, तभी खीर डालोगी न?” स्त्री ने
कहा : “जी महाराज !” स्वामीजी बोले,
“मेरा भी यही उपदेश है। मन में जब तक चिन्ताओ
का कूड़ा-
कचरा और बुरे संस्करो का गोबर भरा है, तब तक
उपदेशामृत का कोई लाभ न होगा।
यदि उपदेशामृत पान करना है, तो प्रथम अपने
मन को शुद्ध करना चाहिए,
कुसंस्कारो का त्याग करना चाहिए, तभी सच्चे
सुख और आनन्द की प्राप्ति होगी।जय श्री कृष्णा

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