1. जो दुनियाँ का गुरु बनता है वह दुनियाँ का गुलाम हो जाता है,,, ओर जो अपने आपका गुरु बनता है वह दुनियाँ का गुरु हो जाता है
    कल्याण प्राप्ति मैं खुद की लगन ही काम आती है खुद की लगन ना हो तो गुरु क्या करेगा ,,, ओर शास्त्र क्या करेगा,,,
    जो हमसे कुछ चाहता है वह हमारा गुरु केसे हो सकता है
    पुत्र ओर शिष्य को श्रेष्ठ बनाने का विधान तो है परन्तु अपना गुलाम बनाने का विधान नहीं है
    गुरु मैं मनुष्य बुद्दी करना ओर मनुष्य मैं गुरु बुद्दि करना अपराध है क्यों की गुरु एक तत्व है, शरीर का नाम गुरु नहीं है
    शिष्य दुर्लभ है गुरु नहीं,,,, जिगयासु दुर्लभ है ज्ञान नही ,,,, भ्गत दुर्लभ है भगवान है
    जय श्री कृष्णा