Monday 31 March 2014

सामान्य देवता को प्रसन्न करने की तो शक्ति नहीं

हे प्राणनाथ हे गोविंदे आप अपने सुयश की लाज रखिये, मैं महा पतित हूँ कभी थोड़ा सा भी आप के काम नहीं आया ( जरा  भी भजन नहीं किया ) अत्यन्त बलवान माया के द्वारा भवन ,, संपति,,, स्त्री,,, आदि के बन्धन मोह मैं बाँध दिया गया हूँ ,,, हे प्रभु मैं देखता हूँ,,, सुनता हूँ,,,, ओर ( मोह के दोष ) सब जानता हूँ फिर भी बाज नहीं आया ( उसे छोड़ नहीं सका ) कहा जाता है की आपने बहुत से पतीतों का उद्धार किया है मेने अपने कानों से भी यह शब्द संतों द्वारा सुना है ,,, हे प्रभु जी मेरी दशा यह है की केवट को नदी पार करने की उतराई तो दे नहीं सकता ओर बेठना जहाज़ पर चाहता हूँ ,, हे प्रभु जी किसी सामान्य  देवता को प्रसन्न करने की तो शक्ति नहीं ओर मेरा साहस देखो की आप जी की शरण लेना चाहता हूँ,,, हे मदुसुदन हे नन्द नंदन इस नीच को भाव सागर से पार उतार दिजिये हे प्रभु मैं आप जी को नई बात करने को नहीं कहता हूँ आप तो सदा से ही ग़रीबों  पर किरपा करने वाले हैं
जय श्री कृष्णा

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