Wednesday 26 March 2014

बरसे तो भर दे जल जंगल

बरसे तो भर दे जल जंगल आकाश मैं सागर कहीं नहीं
हर अपराधी को दंड देता उसकी लगी कचहरी कहीं नहीं
हर भूखे को अन्न देता उसके लगे भंडारे कहीं नहीं
हर दिल मैं वोह बस्ता है उसका ठोर टीकाना कहीं नहीं

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