Monday 4 August 2014

हँस तो रहा हूँ

बुलंदी की उडान पर हो तो , 
जरा सब्र रखो। 
परिंदे बताते हैं कि , 
आसमान में ठिकाने नही होते ।। 

: चढ़ती थीं उस मज़ार पर चादरें बेशुमार , 
लेकिन बाहर बैठा कोई फ़क़ीर सर्दी से मर गया।। 

: कितनी मासुम सी ख़्वाहिश थी इस नादांन दिल की , 
जो चाहता था कि.. शादी भी करूँ और ....
ख़ुश भी रहूँ ।। 

: छत टपकती है उसके कच्चे घर की , वो किसान फिर भी बारिश की दुआ माँगता है ।। 

: तेरे डिब्बे की वो दो रोटिया कही भी बिकती नहीं , 
माँ ...........
होटल के खाने से आज भी भूख मिटती नहीं ।।

: इतना भी गुमान न कर आपनी जीत पर " ऐ बेखबर "
शहर में तेरे जीत से ज्यादा चर्चे तो मेरी हार के हे....।।

: सीख रहा हूं अब मैं भी इंसानों को पढने का हुनर , 
सुना है चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता है ।।

: लिखना तो ये था कि खुश हूँ तेरे बगैर भी , 
पर कलम से पहले आँसू कागज़ पर गिर गया ।।

: " मैं खुल के हँस तो रहा हूँ फ़क़ीर होते हुए , 
वो मुस्कुरा भी न पाया अमीर होते हुये ।।

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