Sunday 17 August 2014


 उम्मीद पर अपने नित्य कर्म में बैल की तरह जूते हुए मनुष्य का दिनोदिन आयु कम होता जा रहा है । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।

 जन्म लेते दुःख, रोगों से दुःख, जीने में दुःख ही दुःख और अंत समय मृत्यु काल में महादु:ख । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।

 काम, क्रोध, लोभ और मोह रूपी शत्रु (चोर) जो ज्ञान (विवेक) रूपी धन को चुराने में हर समय लगे हुए हैं । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।

 ऐश्वर्य एक स्वप्न की तरह, जवानी कोमल पुष्प की तरह और तपती रेत पर पड़ने वाले पानी के बूंद की तरह आयु है । जिसे मनुष्य जानकर भी अनजाना बना हुआ है, लेकिन हे प्राणी ! तूं अनजाना मत बन अब तो जाग ! अब तो जाग ।।

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