Saturday 9 August 2014

अपनी मोत का कोई एहसास नहीं

एक गाँव में तालाब था वहाँ सुंदर वृक्ष थे तालाब में मछलिया ओर बहुत मेडक भी रहते थे तालाब के पास एक वर्मि थी उस में एक साँप रहता था एक दिन साँप को बहुत भूख लगी वर्मि से बाहर निकल कर वह शिकार की तलाश करने लगा साँप ने एक बहुत बड़ा मेडक देखा सोचा चलो इस का शिकार करते हैं कुछ दिन निकल जाएगे साँप ने मेडक को पकड़ लिया पीछे से ओर लगा निगलने अब रात का समय था मेडक साँप के मुँह की पकड़ में आगया मेडक के सामने मच्छर भीनभीनाने लगे मेडक मच्छरों का शिकार करने लगा अब ज्ञान की दृष्टि से देखे
साँप के मुख में मेडक है मेडक को अपनी मोत का कोई एहसास नहीं ओर वह आगे मच्छरों का शिकार कर रहा है
एसे ही हम भी अपनी मोत को भूल कर दूसरों को लूट रहे हैं मार काट कर रहे हैं धोखा दे रहे हैं क्या हम भी कभी इंसान बनने की कोशिश करेगे या यूहीं अपना जीवन गवा देंगे 
अकेले ही जो खा खा कर सदा गुजरान करते हैं
यूँ भरने को तो दुनियाँ में पशु भी पेट भरते हैं
मगर जो बाँट कर खाए उसे इंसान कहते हैं
किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं

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