Saturday 9 August 2014

जीव जब गुरु के पास जाता है तो

गीता ही मानव का एक मात्र ग्रंथ हे यह ठीक है कियूं के ज्ञान के बिना भगति या भगवान की तरफ़ आदमी का ध्यान जाएगा ही नहीं प्रन्तु ज्ञान इतना भी ठीक नहीं के यह सिर का बोझ ही बन जाए कियूं के ज्ञानी हर बात को पहले समझेगा सोचेगा ओर फिर उस बात की गहराई तक जाएगा 
लेकिन भगति मैं भ्ग्त पूरण विश्वास से साथ उतर जाता है ओर बहुत जेल्दि भगवान को पा लेता है
जीव जब गुरु के पास जाता है तो वह श्रधा ओर पूरण विश्वास से भरा होता है कुछ समय वह खूब भजन ओर ध्यान करता है ओर कहता है के मेरा तो जीवन ही ध्न्ये हो गया ओर फिर अपना ज्ञान बड़ाने के लिए धार्मिक ग्रन्थ पड़ने लगता है ओर फिर उस मैं एसा उलझ जाता है के ध्यान कम होता जाता है ओर भगवान के बारे मैं ज़्यादा सोचने लगता है ओर फिर पहले वाली स्थिति मैं ही पहुँच जाता है 
हमारे गुरु जी कहते हें के जीव जब गुरु से शब्द लेता है तो गुरु कहता है के मेने सब वेद ग्रन्थ पुराण ओर शाष्तर पड़ लिए हैं उनका जो सार है वह यह शब्ध है जो मैं तुम्हें दे रहा हूँ गुरु की श्ररण मैं जाने के बाद शंका का तो सवाल ही नहीं उठता ओर यदि उठता है तो समझो के अभी भाग्ये साथ नहीं दे रहा है

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