Thursday 7 August 2014

जीव का मन निर्मल केवल

निर्मल मन जन सो मोहि पावा,मोहि कपट छल छिद्र न भावा.
प्रभु श्री रामजी को निर्मल मन वाला छल कपट रहित जन ही पाता है पर जीव का मन निर्मल केवल माँ जानकी की कृपा से ही सम्भव है.
जैसे कोई सज्जन तैयार होकर बाहर जाने के लिए निकले उसी समय उसका दो चार वर्ष का बालक उसके साथ जाने की जिद करने लगे लेकिन गंदे कपड़े मुंह भी गंदा नाक बह रही हो तो अपना पुत्र होते हुए भी वह व्यक्ति अपने साथ नहीं ले जाता.
परन्तु यदि माँ की दृष्टि पड़ जाय तो वो दो मिनट का इन्तजार करने को कहकर बालक को साफ कर अच्छे कपड़े पहनाकर जब पिता के सन्मुख ले जाती है तो फिर पिता सहर्ष गले लगाकर साथ ले जाता है.
उसी प्रकार हम सब परमपिता की सन्तान होते हुए भी वह हमारे दुर्गुणों के कारण न गले लगाते हैं और न साथ रखते हैं.परन्तु कहीं माँ जानकी की दृष्टि पड़ जाय तो वह अपनी करुना के साबुन से साफ़ कर निर्मल मन दे कर रामजी के सन्मुख प्रस्तुत करती हैं तो श्री रामजी सहर्ष गले भी लगाते हैं और साथ भी रखते हैं.

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