Thursday 28 August 2014

यह आत्मा की एक शक्ति है

आत्म प्रशंसा एक बहुत बड़ा अवगुण है| कभी भूल से भी आत्मप्रशंसा ना करें|
आपके भीतर एक आध्यात्मिक चुम्बकत्व है, वह बिना कुछ कहे ही आपकी महिमा का बखान कर देता है| ध्यान साधना से उस आध्यात्मिक चुम्बकत्व का विकास करें|
वह चुम्बकत्व आप में होगा तो अच्छे लोग ही आपकी तरफ खिंचे चले आयेंगे, आप जहां भी जायेंगे वहां लोग स्वतः ही आपकी और आकर्षित होंगे, आपकी बातें लोग ध्यान से सुनेंगे, आपकी कही हुई बातो को लोग कभी भूलेंगे नहीं और उन पर आपकी बातों का चिर स्थायी प्रभाव पडेगा|
कभी कभी आप बहुत सुन्दर भाषण और प्रवचन सुनते है, बड़े जोर से प्रसन्न होकर तालियाँ बजाते हैं, पर पांच दस मिनट बाद उसको भूल जाते हैं| वहीं कभी कोई आपको एक मामूली सी बात कह देता है जिसे आप वर्षों तक नहीं भूलते| कभी कोई अति आकर्षक व्यक्ती आपसे मिलता है, मिलते ही आप उससे दूर हटना चाहते हैं, पर कभी कभी एक सामान्य से व्यक्ति को भी आप छोड़ना नहीं चाहते| यह व्यक्ती व्यक्ती का चुम्बकत्व है|
आध्यात्मिक चुम्बकत्व क्या है ???
यह आत्मा की एक शक्ति है जो उस हर वस्तु या परिस्थिति को आकर्षित या निर्मित कर लेती है जो किसी को अपने विकास या सुख-शांति के लिए चाहिए|
आप जहाँ भी जाते हैं और जिन भी व्यक्तियों से मिलते हैं उन के चुम्बकत्व का आपस में विनिमय होता रहता है, इसीलिए अपने शास्त्रों में कुसंग का सर्वथा त्याग करने को कहा गया है| सत्संग की महिमा भी यही है|
जब हम संत महात्माओं के बारे चिंतन मनन करते हैं तब उनका चुम्बकत्व भी हमें प्रभावित करता है| इसीलिए सद्गुरु का और परमात्मा का सदा चिंतन करना चाहिए और मानसिक रूप से सदा उनको अपने साथ रखना चाहिए|
किसी की निंदा या बुराई करने से उसके अवगुण आपमें आते हैं अतः परनिंदा से बचो|
अपने ह्रदय में निरंतर अपने इष्ट देव/देवी का, व भ्रूमध्य में अपने सद्गुरु का निरंतर ध्यान रखें| इससे आपके आध्यात्मिक चुम्बकत्व का विकास होगा| आप प्रायः शांत और मौन रहें, अपने चुम्बकत्व को बोलने दें|
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 

No comments:

Post a Comment