Monday 4 August 2014

एक सुझाव पर विचार कीजिए

आज अधिकांश परिवारों में अपने लोगों को समय न दे पाना भी तनाव का एक कारण है। कई परिवार तो इसके कारण टूट भी रहे हैं। व्यस्त आदमी धन के बंटवारे में तो सक्षम हो गया पर समय के बंटवारे में नादान साबित हो रहा है। जब अपने लोगों को समय देने का दबाव बनता है तो चतुर लोग इसमें भी अभिनय करने लगते हैं। इस धोखे को पकड़ा जा सकता है। जो व्यक्ति शरीर से यहां मौजूद है, वह भीतर से गायब हो चुका है। दिखावट तो सुंदर हो सकती है, लेकिन अहसास के स्तर पर यह छल बहुत दिनों नहीं चलता।
एक सुझाव पर विचार कीजिए। आप जब अपने घर में अपने लोगों के बीच हों, उन्हें समय दे रहे हों तो एकदम संन्यासी की तरह हो जाएं। बात सुनने में उल्टी लगेगी कि घर में तो गृहस्थ की तरह होना चाहिए, लेकिन इसी में इसका अर्थ छुपा है। गृहस्थ गणित में माहिर होता है। वो कई चीजें तौल-मौल कर करता है। गृहस्थ में अपने-पराए का भेद भी रहता है। दिखाना-छुपाना गृहस्थ की अदा है। तब अपने लोगों के साथ संबंध निभाने में भी यही सब चलता है, लेकिन संन्यासी की एक विशेषता होती है। वह सिर्फ परमात्मा के लिए जीता है। संन्यास का अर्थ ही यह है कि परमशक्ति के प्रति निष्ठा। संन्यासी का अर्थ है जो बाहर है वही भीतर और जैसे ही इस वृत्ति से आप अपने लोगों के बीच समय दे रहे होते हैं, आप शतप्रतिशत वहीं होते हैं। तब उस समय में पे्रम की सुगंध अपने-आप बहने लगती है और परिवार को बचाने के लिए प्रेम बहुत बड़ा जरिया है।

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