Saturday 9 August 2014

जिसमें विद्वता का अभिमान है वह ज्यादा दया का पात्र है

→ सबसें मित्रता क्यों करनी चाहिये ? महान पुरुष सबके साथ प्रेम करने के लिये कहते हैं । अज्ञानी पापी के साथ प्रेम करेंगे तो फँसने का भय है । महापुरुष ही यदि पापियों की उपेक्षा करेंगे तो फिर उनकी संभाल कौन करेगा ? गीतामें `सर्वभूतानाम् मैत्रः` या पद आये हैं ।
→ नीच पुरुषों कि उपेक्षा किस तरह करनी चाहिये ? जैसे आपके मित्रके प्लेगकी बीमारी हो गयी तो उससे दुरसे यानि बीमारी से डरते हुये उसका इलाज कराये । जिन पुरुषों में दुराचार है, जिनके मानसिक बीमारी है, उनका रोग मिटे ऐसी चेष्टा करनी चाहिये ।
→ जिसमें विद्वता का अभिमान है वह ज्यादा दया का पात्र है ।
→ परमात्मा की प्राप्ति होनेके बाद अभय हो जाता है यह बात तो ठीक है, पर उनके निकर पहुँचनेपर भी अभय हो जाता है ।
→ अभय पद कैसे प्राप्त होता है ? अन्त:करण की शुद्धि होने से निर्भय हो जाता है । जैसे रात्रि में कोई सोया हुआ है, वह स्वप्न में बाघ आया हुआ देखकर बड़ाभारी भयभीत हो रहा है, कलेजा धक्-धक् कर रहा है । स्वप्न में बाघ से डरकर यह दशा हुई, जाग्रत होने पर अब वह बात नहीं है ।
→ ध्यान करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं, साधक निर्भय हो जाता है । आलस्य एवं स्फुरणा के कारण ध्यान नहीं होता ।
→ प्रश्न---सत्संग करते हैं, गीता भी देखते हैं, पर आँख तो नहीं खुली ?
उत्तर---पाठ तो करते हो आँख मीचे हुए, सोये हुए, इससे क्या लाभ हो । पाठ तो करते हो उसके अर्थ का पता नहीं है उसके बिना क्या हो ? जिसने आत्मा का कल्याण नहीं किया उसको धिक्कार है । लाख काम छोड़कर, करोड़ काम छोड़ कर जिस काम में परमात्मा की प्राप्ति हो वही काम पहले करना चाहिये ।
→ कुपथ्य करके आदमी मर सकता है । औषधि बिना कोई नहीं मर सकता । इसमें विश्वास का काम है । शास्त्रविरुद्ध, धर्मविरुद्ध कोई औषधि नहीं लेनी चाहिये । विदेशी कोई चीज काम में नहीं लेनी चाहिये । सबसे ख़राब चीज विदेशी औषधि है । इससे अपना सर्वनाश हो गया । मृत्यु से कोई औषधि नहीं बचा सकती । तीसरी बात यह है कि देशी औषधि उपयोग में ली जाय उससे अपना जितना लाभ है उतना किसी से नहीं है ।
→ उत्तम कर्म तो करने से होगा, उसमें प्रभु की दया समझनी चाहिये । बुरा काम हो उसमें अपनी आसक्ति का दोष समझना चाहिये ।
→ उत्तम कर्म करने में स्वतंत्रता है, इसमें भगवान् पूरी सहायता देता हैं । अच्छे कर्ममें कुसंग तथा बुरी आदत बाधा देते हैं ।
→ गोद लेकर अपना लड़का बना लेना शास्त्र के विरुद्ध नहीं है । पर वर्तमान में देखा जाय तो किसी को डूबना हो तो गले में पत्थर बाँधकर डूबना है । यदि आपके पास धन हो तो अच्छे काम में लगा देना चाहिये ।

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