Wednesday 27 August 2014

यह तुम्हे नहीं मालूम

नमः शिवाय! बाबा जी कहते हैं: "जो भी शब्द तुम अपने मुख से निकालते हो, वह फलीभूत होता ही होता है क्योंकि मैं ही परब्रह्म हूँ| मेरे संचित कर्मों के कारणवश मेरे कहे हुए वचन कुछ देर बाद फलीभूत होते हैं पर होते अवश्य हैं| इसलिए अभ्यास डालो की हर समय अच्छा ही बोलो| कुछ लोगों को आदत होती है ऐसे कथन बोलने की - 'कहाँ मर गया वो? आया क्यों नहीं?', 'यह क्या कर दिया उसने, अब तो वा मरेगा', 'आय हाय यह कैसी सब्ज़ी है', 'पागल हो गया है क्या?', 'वो तो पूरा ही उल्लू / गधा / कुत्ता है',' 'दिमाग़ खराब है क्या तेरा?', 'दिमाग़ मत चाट' इत्यादि| इतना अभ्यास हो जाता है हमें ऐसे वाक्य बोलने का की हम अंजाने में ही बोल जाते हैं यह सब| तर्क देने वाले कहेंगे की इससे क्या होता है? देखो जो बोल तुम conscious mind से बोलते हो, वही तुम्हारे sub conscious में बैठ जाता है| तुम बेशक मज़ाक में ही क्यूँ ना बोल रहे हो पर दूसरे व्यक्ति की चेतना में किस रूप से जाके बैठ रहा है यह तुम्हे नहीं मालूम| जिस भी चीज़ का हम बार बार संकीर्तन, मनन और अध्ययन करते हैं वह हमारे मन में जाके बैठ जाती है और एक न एक दिन फलीभूत ज़रूर होती है| इसलिए कोई भी वचन तुम्हारे मुख से, हसी-हसी में भी ऐसा ना निकले जिसमें दुख हो, पीड़ा हो, किसी पशु से तुलना हो, किसी बीमारी का उल्लेख हो, घृणा की भावना हो और किसी को संताप पहुँचने का विचार हो| वाणी, पाप और पुण्य कर्म करने का एक शक्तिशाली माध्यम है| इसको किसी की प्रशंसा या फिर उससे भी उत्तम - उस शिव की जयजयकार करने में ही लगाना|"

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