Friday 1 August 2014

अपना कल्याण भी संभव होता है

भला चाहते हैं तो हृदय मे मौजूद प्रेम को और बढ़ाइए

मनुष्य की सबसे बड़ी मूलभूत आवश्यकता है आपसी प्रेम, एक दूसरे के लिए गर्मजोशी। हमें मित्रों की बड़ी आवश्यकता होती है। उनसे हमें मानसिक प्रसन्नता और शांति मिलती यदि हमें सच्ची मित्रता पैदा करनी है तो हमें अनुकूल मानवीय विचारों और भावनाओं का यथा प्रेम, करूणा और गर्मजोशी का उपयोग करना चाहिए।
जब हमारे पास धन, प्रभाव या सत्ता का बल होता है तो हमारे बहुत से मित्र होते हैं किंतु जब ये बल बल नहीं रहते तो वे मित्र भी गायब हो जाते हैं। सच्चे मित्र की हमेशा तलाश रहती है। एक अच्छे मित्र को पाना दुर्लभ होता है। हृदय की उदारता से हम जो सच्चे मित्र प्राप्त करते हैं, वे हमारी सफलताओं अथवा समस्याओं से ग्रस्त होने की अवस्था में भी मित्र ही बने रहते हैं।
इस प्रकार की मित्रता सच्चे नेक दिल से ही विकसित हो पाती है। बुनियादी तथ्य यह है कि मानवता की रक्षा दया भाव, प्रेम और करूणा से ही संभव है। मानव को विवेक-बुद्धि प्राप्त हुई है। प्रेमयुक्त हृदय में जो संभावनाएं विद्यमान हैं, उनका समुचित प्रयोग किया जाए तो हम जीवन की वास्तविक धन्यता का और मानव जीवन के विराट उद्देश्य की पूर्णता का अनुभव कर सकते हैं।
अपने दृष्टिकोण से यदि हम देखें तो पाएंगे कि जब तक हमें ये मानसिक और शारीरिक क्षमताएं प्राप्त हैं, जो हमारे वर्तमान कर्मों और क्लेशों सरीखे कारणों से निकलते हैं, तब तक अखंड शांति और आनंद की प्राप्ति नहीं होगी और हम अन्य प्राणियों को भी इसी स्थिति में फंसे हुए पाएंगे। इसलिए हमें संबोधि-प्राप्त करने की वास्तविक कामना जाग्रत करनी चाहिए।
यह ऐसी अवस्था है जो क्लेशों और कर्मों के बंधनों से मुक्ति दिलाती है। इसे संन्यास की स्थिति भी कह सकते हैं, हालांकि इसमें व्यक्ति को समाज और परिवार का त्याग नहीं करना होता। उस अवस्था में हम अन्य प्राणियों की भलाई के कार्यों में लगे होते हैं किंतु अनायास रूप में हमारा अपना कल्याण भी संभव होता है।

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