Monday 13 October 2014

मेरे पांव पड़ी ज़जीर

कन्हैया से प्रीत न करियो कोय....!!
हे वृषभानु सुते ललिते ! मैं कौन कियो अपराध तिहारौ,
काड दियो वृजमण्डल ते अब हू कछु दंड रहयो अति भारो।
देहू सदा व्रज को बसिवो, वह निकुण्ज कुटि यमुना जल प्यारो,
आपनौ जान दया की निदान भयि सौँ भईँ अब बेगी सम्हारो।
जो में एसो जानती की प्रीत किये दुःख होय।
नगर ढिढोरा पीटती कन्हैया से प्रीत न करियो कोय।।
प्रियतम बसे पहाड़ पे और में यमुना के तीर।
अब तो मिलना कठिन हे मेरे पांव पड़ी ज़जीर।।

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