Sunday 5 October 2014

और कुछ देर मुझे पास बिठाये रखिये
ज़िन्दगी जीने का माहौल बनाये रखिये
बात होठों से जो निकलेगी तो सब सुन लेंगे
आँखों-आँखों में ही बातों को सुनाये रखिये
वक़्त का किसको भरोसा है कहाँ ले जाये
आज की रात मेरा साथ निभाये रखिये
कितने नफ़रत के अँधेरे हैं अभी धरती पर
इक न इक शम्आ मुहब्बत की जलाये रखिये
आइना ख़ाक बतायेगा तुम्हें राज की बात
मेरी तस्वीर को आइना बनाये रखिये
मैं भी इक फूल हूँ ख़ुशबू ही लुटाउँगा तुम्हें
अपने गुलशन में मुझको भी सजाये रखिये

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