Thursday 2 October 2014

क्षण भी नहीं लगेगा

बुद्ध ने कहा है, ध्‍यान का सतत अभ्यास करने वाले धीर पुरुष अनुत्तर योगक्षेम रूप निर्वाण को प्राप्त होते हैं। क्या निर्वाण के भी प्रकार हैं?
निर्वाण के तो कोई प्रकार नहीं हैं। जैसे फल जब पक जाता है तो एक क्षण में गिर जाता है, गिरने में कोई प्रकार नहीं है। लेकिन फल के पकने की बहुत सीढ़ियां हैं। अधपका फल है-अभी गिरा नहीं। कच्चा फल है-अभी गिरना बहुत दूर, गिरने की यात्रा पर है। गिरेगा तो फल एक क्षण में। पक गया, क्षण भी नहीं लगेगा। फिर गिरने में सीढ़ियां नहीं हैं; गिर तो एकदम जाएगा। लेकिन गिरने के पहले बहुत सी सीढ़ियां हैं।
कच्चा फल भी वृक्ष से लगा है, अधपका फल भी वृक्ष से लगा है-अगर हम वृक्ष से लगे होने को ध्यान में रखें तो दोनों में कोई भी फर्क नहीं है। फर्क इतना ही है कि अधपका फल पकने के करीब आ रहा है, कच्चा फल बहुत दूर है। मगर दोनों वृक्ष से लगे हैं। निर्वाण तो एक ही क्षण में घट जाता है। लेकिन एक व्यक्ति है जिसने कभी ध्यान नहीं किया, कभी प्रेम नहीं किया-कच्चा फल है। वह भी अभी संसार में है। फिर किसी ने प्रेम किया, किसी ने ध्यान किया-वह भी अभी टूट नहीं गया है, अभी वह भी पक कर गिर नहीं गया है, वह भी संसार में है। अगर संसार में ही होने को देखें, तो दोनों संसार में हैं। लेकिन अगर उस भविष्य की घटना को हम खयाल में रखें तो एक कुछ कदम आगे बढ़ा है गिरने के करीब, और दूसरा अभी बहुत दूर खड़ा है। एक कच्चा फल है, एक अधपका फल है।

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