तुम अपने पापों या कर्मों के कारण इतने नहीं भटकते हो, जितना गलत विधि चुनने के कारण भटकते हो। ‘अनुकूल को चुन लेना बड़ा आवश्यक है। प्रतिकूल को चुनना ऐसा ही है जैसे कोई गुलाब का फूल कमल होने का कोशिश कर रहा हो। वह कमल तो हो ही न पाएगा, गुलाब भी न हो पाएगा, क्योंकि कोशिश में सब ऊर्जा व्यर्थ हो जाएगी। गुलाब का फूल गुलाब ही हो सकता है। कमल का फूल कमल ही हो सकता है।
मगर न तो कमल का सवाल है न गुलाब का, असली सवाल खिल जाने का है। प्रेम से खिलो कि ध्यान से खिलो, कोई फर्क नहीं पड़ता। आखिरी हिसाब में खिल गए, बंद-बंद न मर गए। बंद-बंद मरे तो वापस आना पड़ेगा, खिलकर मरे तो वापसी नहीं है। जो खिलकर गया, वह सदा के लिए गया। वह फिर स्वीकार हो गया।
इसलिए तो हम परमात्मा के चरणों में जाकर फूल चढ़ाते हैं। वह सिर्फ प्रतीक है कि उसके चरणों में केवल वे ही स्वीकार होंगे जो फूल की तरह खिलकर जाते हैं। जो बीज की तरह ही हैं उनको तो वापस आना पड़ेगा।
निर्वाण का अर्थ है, खिल जाना। जो भीतर था, वह प्रगट हो गया; जो अनभिव्यक्त था, वह अभिव्यक्त हो गया; जो गीत अनगाया पड़ा था, वह गा लिया गया; जो नाच अननाचा पड़ा था, वह नाच लिया गया।
जिस दिन भी तुम्हारी नियति पूरी हो जाती है, तुम सौरभ से भर जाते हो, तुम्हारी पखुडियां खिल जाती हैं-उसी दिन तुम स्वीकार हो जाते हो। तुमने अर्जित कर लिया मोक्ष। तुमने कमा लिया मोक्ष। अस्तित्व अपनी बांहें फैलाकर तुम्हारा स्वागत करता है।
सारा अस्तित्व उत्सव मनाता है जिस दिन एक व्यक्ति भी बुद्धत्व को उपलब्ध होता है। क्योंकि सारा अस्तित्व सदियों तक प्रतीक्षा करता है, तब कहीं करोड़ों लोगों
कोई एक पहुंच पाता है। और सभी पहुंचने के हकदार थे। सभी पहुंचने को ही ? को पहुंचना ही चाहिए। दुर्भाग्य है कि लोग न मालूम दूसरे कामों में उलझ हैं, व्यर्थ के कामों में उलझ जाते हैं; सार को नहीं पहचान पाते, असार को नहीं पाते।
बुद्ध कहते हैं, जिसने सार को सार की तरह जान लिया, असार को असार की
जान लिया–वही, वही उपलब्ध हो पाता है।
मगर न तो कमल का सवाल है न गुलाब का, असली सवाल खिल जाने का है। प्रेम से खिलो कि ध्यान से खिलो, कोई फर्क नहीं पड़ता। आखिरी हिसाब में खिल गए, बंद-बंद न मर गए। बंद-बंद मरे तो वापस आना पड़ेगा, खिलकर मरे तो वापसी नहीं है। जो खिलकर गया, वह सदा के लिए गया। वह फिर स्वीकार हो गया।
इसलिए तो हम परमात्मा के चरणों में जाकर फूल चढ़ाते हैं। वह सिर्फ प्रतीक है कि उसके चरणों में केवल वे ही स्वीकार होंगे जो फूल की तरह खिलकर जाते हैं। जो बीज की तरह ही हैं उनको तो वापस आना पड़ेगा।
निर्वाण का अर्थ है, खिल जाना। जो भीतर था, वह प्रगट हो गया; जो अनभिव्यक्त था, वह अभिव्यक्त हो गया; जो गीत अनगाया पड़ा था, वह गा लिया गया; जो नाच अननाचा पड़ा था, वह नाच लिया गया।
जिस दिन भी तुम्हारी नियति पूरी हो जाती है, तुम सौरभ से भर जाते हो, तुम्हारी पखुडियां खिल जाती हैं-उसी दिन तुम स्वीकार हो जाते हो। तुमने अर्जित कर लिया मोक्ष। तुमने कमा लिया मोक्ष। अस्तित्व अपनी बांहें फैलाकर तुम्हारा स्वागत करता है।
सारा अस्तित्व उत्सव मनाता है जिस दिन एक व्यक्ति भी बुद्धत्व को उपलब्ध होता है। क्योंकि सारा अस्तित्व सदियों तक प्रतीक्षा करता है, तब कहीं करोड़ों लोगों
कोई एक पहुंच पाता है। और सभी पहुंचने के हकदार थे। सभी पहुंचने को ही ? को पहुंचना ही चाहिए। दुर्भाग्य है कि लोग न मालूम दूसरे कामों में उलझ हैं, व्यर्थ के कामों में उलझ जाते हैं; सार को नहीं पहचान पाते, असार को नहीं पाते।
बुद्ध कहते हैं, जिसने सार को सार की तरह जान लिया, असार को असार की
जान लिया–वही, वही उपलब्ध हो पाता है।
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