Thursday 23 October 2014

श्रीगुरुभक्ति बढती ही रहै


श्री सद्गुरुदेव की शरणागति प्राप्त करनौ साधु कौ सर्वप्रथम कर्त्तव्य है ।
श्री सद्गुरुदेव में अधिक सौं अधिक श्रद्धा भाव राखनौ ।
दिन व दिन श्रद्धा कूँ बढाते रहनौ ।
यह देखते रहनौं कि श्रद्धा में कमी तो नहीं आय रही है ।
अपनी बुद्धिमत्ता कौ त्याग करिकैं इनकी आज्ञा के अनुसार अपनी धारणा बनानी ।
इनकी आज्ञा के विरुद्ध कोई काम नहीं करनौ ।

समस्त साधन तथा साध्य प्राप्ति कौ मूल श्री गुरु भक्ति ही है ।
ऐसे उपाय करते रहनौं जासौं श्रीगुरुभक्ति बढती ही रहै ।

साधन के विषय में जो कछु समझनौ होय, यहीं सौं समझि लेनौ चहिये, फिर कछु जानिवे की इच्छा ही न रह जाय , तो फिर कहूँ अन्यत्र जिज्ञासा करनी परे ।

जब ताँई पूर्णबोध न है जाय, पूछिवे में संकोच न करै ।
श्री गुरु में मनुष्य भाव रखनa महा पाप है ।
बिना बिचारे , बिना तर्क किये इनकी सद् आज्ञा को पालन करनौ ही साधु कौ परम कर्त्तव्य है ।
शीघ्रातिशीघ्र साधन सम्बन्धी समस्त विषयन कूँ समझि लेनौ उचित है ।
पवित्र कार्य तथा सदाचार पालन सौं श्रद्धा की पुष्टि होय है ।
श्रद्धा सम्पन्न साधक के ताँई लोक तथा परलोक में कछु दुर्लभ नहीं ।
अपने सद्गुरु भगवान में अधिक सौं अधिक श्रद्धा होनौ ही उचित है , किन्तु साथ ही यहू विचार रहै कि अन्य सन्तन में अवज्ञा बुद्धि न हौन पावै ।
सबरे सन्त महापुरुष श्री भगवत् तुल्य माननीय तथा आदरणीय हैं ।
जानेहु सन्त अनन्त समाना ।
चाहै जा देश के हौयँ , चाहे जा जाति के हौयँ , सन्त सबही परम माननीय हैं ।
सब में उच्च भाव राखै । सबकौ सम्मान करै । सबकी सेवा करै । सबकी वणीन को अध्ययन करै । सबके उपदेश सुनै । सबके महाप्रसाद हू लै सकै है (जहाँ इच्छा होय )
किन्तु साधन अपने श्रीसद्गुरु देव की आज्ञा के अनुसार ही करै ।

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