Wednesday, 22 October 2014

भक्ति का वृक्ष जब साधक के हृदय में

भक्ति का वृक्ष जब साधक के हृदय में छोटे पौधे के रूप में होता है, तब उसे हानि का भय माया रूपी बकरी से भी होता है, अत: पौधे की रक्षा के लिए उसके चारों ओर विचार रूपी घेरा लगाकर सत्संग रूपी जल से सींचा जाता है, तब उसमें शाखाएं निकलती हैं और वह आकाश की ओर बढने लगता है।
सरल साधु हृदय रूप थाल्हे में सुशोभित इस विशाल भक्ति वृक्ष की छाया अर्थात सत्संग पाकर त्रिविध तापों से तपे जीव समूह सन्ताप रहित होकर परमानन्द प्राप्त करते हैं । इस प्रकार सार सँभार करने पर इस भक्ति का विचित्र रूप से बढना तो देखो कि जिसको पहले कभी छोटी सी बकरी का डर था उसी में आज मही संग्राम विजयी , काम क्रोध आदि बडे बडे हाथी बँधे झूम रहे हैं परन्तु इस वृक्ष को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकते हैं ।

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