Thursday 23 October 2014

उनका प्रत्यक्ष दर्शन होता है

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे..

नाम महाराज के अनन्योपासक, साक्षात नामी स्वरुप श्री हरिदास जी महाराज के पादपंकजों में अति तुच्छ किंकर का सर्वतोभावेन आत्मसमर्पण ......
जय श्री राम

श्रील हरिदास ठाकुर

मंगलाचरण
वन्दे गुरूनीशभक्तानीशमीशावतारकान।
ततप्रकाशांश्च तच्छक्ती: कृष्णचैतन्यसंज्ञकम।।1।।
नमामि हरिदासं तं चैतन्यं तंच ततप्रभुम।
संसिथतामपि यन्मूर्ति स्वांके कृत्वा ननत्र्त य:।।2।।
जयाति जयति नामानन्दरूपं मुरारे:,
विरमित निजधर्म-ध्यान पूजादियत्नम।
कथमपि सकृदातं मुक्तिदं प्राणिनां यत,
परमममृतमेकं जीवनं भूषण मे।।3।।
कलोर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान गुण:।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंग: परं व्रजेत।।4।।
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम।
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।।5।।
श्री श्री गुरूगोरांगो जयति
श्री श्री राधारमणो जयति
जय निताइ गौर राधे श्याम
जय हरे कृष्ण हरे राम

निवेदन
ठाकुर हरिदासजीकी निर्वाण लीलाने, प्रेमावतार श्रीगौरहरिके भक्त वात्सल्यकी जो स्थापना की है वह अपूर्व है। भगवान अनन्त गुणों की खान हैं। पर उनका भक्त वात्सल्य गुण निराला ही है। शास्त्रोंमें भगवान की जिन-जिन गुणों की चर्चा सुनी जाती है, गौरांग लीलामें उनका प्रत्यक्ष दर्शन होता है। शास्त्रानुसार भगवान भक्ताधीन हो जाते है पर इसका प्रमाण श्रीश्रीमहाप्रभु के अवतरण एवं न चाहते हुए भी ठाकुर हरिदासजी की निर्वाण इच्छाको पूर्ण करना उनके पार्थिव देह को गोद में लेकर नृत्य करना आदिसे प्रमाणित होता है।
श्रीगौरांगप्रभुका अवतारका प्रयोजन कृष्ण युगल प्रेम, गोपी कृष्ण प्रेम रसादिका ज्ञापनके साथ-साथ हरिनाम वितरण भी था। उनके नामदानसे स्थावर-जंगमादि सब प्रकारके जीवों का कल्याण हुआ है।
श्रीनामकी महिमा श्रीमहाप्रभुने,श्रीहरिदास ठाकुरके माध्यमसे प्रकाशित की है। नाम की कैसी अदभुत महिमा है! यवनों द्वारा चाबुकसे, बाइस बाजारोंमें उनको ताडित किया गया। नामके प्रभावसे वे सारे चाबुकों के वज्राघातको सहन करते गये। वास्तवमें उन सब आधातोंको महाप्रभु स्वयं अपने ऊपर ले रहे थे। तीव्र वृष्टि एवं आतप से ठाकुर हरिदासकी रक्षा करनेके लिए बकुल वृक्षके रूपमें प्रभु ही रक्षक बने और अंतमें उनकी मृतदेह पर भी प्रभुने महान अनुग्रह किया। उनकी देह को लेकर नृत्य करना, यानमें उसे सागर तट पर ले जाना, स्वयं उनकी समाधि के निर्माणमें कार्यरत होना एवं उनके उत्सव के लिए स्वयं भिक्षाकर, भक्तकी महिमा को प्रत्यक्ष किया एवं भक्तवात्सल्यके चरम दृष्टान्त का ज्ञापन किया।
भक्ति, श्रद्धा, साधन, निष्ठा, प्रेम आदिके महासागर थे ठाकुर हरिदास। नाम निष्ठा इतनी कि एक ब्राह्राणके द्वारा, नामके द्वारा मुक्तिप्रप्ति पर संदेह व्यक्त करने पर ठाकुर हरिदास ने कहा कि यदि नाम से मुक्ति प्राप्त नही हो तो वह ब्रह्राण उनकी नाक काट सकता है। ऐसा अटूट विश्वास था उनका हरिनाम के ऊपर। इसी दृढता और विश्वास ने उन्हें नामाचार्य के रुप में जगत्प्रसिद्धि प्रदान की.. 

श्री श्री गुरू गोरांगो जयत:
श्री श्रीनामाचार्य हरिदास ठाकुर की जय

बाल्यकाल
वर्तमान बगंलादेशके खुलना जिलान्तरगत वनग्रामके नजदीक बूढ़न नामका एक छोटासा गाँव है। हरिदास ठाकुरने उसी ग्राममें एक मुसलमानके घर जन्म लिया था।
बूढ़न ग्राम ते अवतीर्ण हरिदास।
से सोभाग्ये से सब देशे कीर्तन प्रकाश।।
चै.भा.आ. 11श
वे पितृ गृहमें कब तक रहे और किस पारसमणिके स्पर्शसे उन्होंने सम्पूर्ण सांसारिक बंधनोंको छिन्न-भिन्न किया और श्री हरिके पादपदमोंका आश्रय लिया, इस बातके कोई स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नही हैं। एक मुसलमान हिन्दूधर्मका आश्रय लेकर भक्तचूड़ामणि, नामाचार्य पदको प्राप्त हए, यह अपने आपमें विचित्र घटना थी। कालान्तरमें इतिहासके पृष्ठोंसे यह तो स्पष्ट होता है कि मुसलमान सम्राटोंके अत्याचारों से शत-शत हिन्दुओं ने मुसलमान धर्म स्वीकार किया परन्तु एक मुसलमानने, हिन्दूधर्मकी शरणगति पाकर भक्ताकाश को, भक्त शिरोमणि बन कर सुशोभित किया।
भक्त चूड़ामणि प्रहलाद राक्षस कुलमें जन्म लेकर, श्रीकृष्ण द्वेशी पिता और शिक्षक के सानिध्य में रहकर, पंकस्थ राजीवकी तरह अपनी भक्तिमती वृतिके कारण ऐसे श्री विष्णुभक्त बने कि कोई भी उनको भक्ति-पथसे च्युत नही कर सका। पिता एवं अन्य राक्षसोंके कठोर उत्पीड़न एवं कुशिक्षकोंके प्रयासेंको सहते हुए भगवत शरणागति प्राप्त कर सके। ठाकुर हरिदास भी उसी श्रेणीके भक्त हुए है

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