Tuesday, 21 October 2014

मेरी वाणी को सत्य कर दो

प्रिय मित्रों ! हम आपको अपने प्रभु की करुणा की बहुत सुन्दर ही कथा सुनाने जा रहे हैं.. गंभीरता और प्रसन्नता से सुनियेगा.. इससे आपकी भक्ति बढ़ेगी..
देखिये, आस्तिक और भक्त में थोड़ा फ़र्क है.. आस्तिक वो है जो मानता है कि भगवान हैं और भक्त मानता है कि भगवान ‘मेरे लिये’ हैं.. आस्तिक जब भी प्रभु की शरण होता है तो वो भक्त बन जाता है.. क्यूंकि भगवान उसे दिखा देते हैं कि ‘मैं तेरा हूँ, तेरे लिये हूँ’... अब कहूँ कि भक्त मानता ही नहीं जानता भी है कि भगवान मेरे लिये हैं.. हम ऐसे ही एक ‘अभक्त’ की कथा सुनाते हैं जो ‘भक्त’ बन गया.. और उनकी कथा हमें भक्त बना देगी...
बात राजस्थान की है.. वहाँ के राना रोज़ रात्रि को भगवान चतुर्भुज के दर्शन करने आते थे. एक दिन उन्हें देर हो गयी तो पंडा ‘श्रीदेवाजी’ ने भगवान को शयन करा कर उनकी प्रसादी माला अपने सिर पर धारण कर ली. उसी समय राना आ गए. जल्दीबाजी में पंडा जी ने वो माला राना के गले में डाल दी. राना ने देखा कि माला में सफ़ेद बाल लगा है. ये देखकर वो क्रोधित हो गया और पूछा कि क्या भगवान के बाल सफ़ेद हो गए हैं. पंडा जी बोल दिए, “हाँ !”.. राना बोले कि ठीक है कल सुबह आकर देखता हूँ..
राना चले गए पर पंडा जी अब बहुत डरे हुए थे. उन्होंने सोचा कि कल तो मेरा मरण दिन है. वो भगवान से प्रार्थना करने लगे कि वाणी के प्रेरक तो आप हो, अब मेरी वाणी को सत्य कर दो. वो आस्तिक तो थे ही, प्रभु की शरण हो गए-
“सीतापति रघुनाथजी ! तुम लगि मेरी दौर
जैसे काग जहाज को, सूझत और न ठौर”
शरण होते ही भगवान ने उन्हें जता दिया कि वो उसके हैं. उन्होंने अपने बाल सफ़ेद कर लिये और अन्दर से बोले आकर देख लो मैंने अपने बाल सफ़ेद कर लिये हैं. पंडा जी तुरंत दौड़ कर अन्दर गए और देखा कि भगवान ने सफ़ेद बाल धारण कर लिये थे. पंडा जी के आँखों में प्रेम के आँसू आ गए और उन्होंने जो कहा वो सुनिए-
“मैंने प्रभु की लेशमात्र भी सेवा नहीं की परन्तु भक्तवत्सल प्रभु बड़े ही दयालु हैं, सदा अपने भक्तों का प्रतिपाल करते हैं, और मैं तो अभक्त ही हूँ. तथापि मेरी प्रार्थना से आपका कोमल ह्रदय संकोच को प्राप्त हुआ. मैं सच्चा झूठा आपही का तो कहलाता था, सो इस सम्बन्ध से आपने यह विचार किया, ‘कि जो मैं इसकी अब रक्षा नहीं करूँ तो मेरे ही नाम की लज्जा होगी अतएव सरकार ने मेरे सुख का साजनेवाला यह वेष धारण कर लिया और अपनी कृपालुता सबको दिखा दी.’
आपने देखी ‘कृपालुता’.. तो चलो शरण हो जाओ...
आगे राना आते हैं. पहले सोचते हैं कि ये पंडा जी की चाल है. भगवान के बाल खींचते हैं. उससे रक्त की धारा निकलती है. राना बेहोश हो जाते हैं. जब उठते हैं तो क्षमा मांगते हैं. प्रभु उन्हें दंड देते हैं कि अब मेरे दर्शन को मत आना और जो भी उदयपुर का राना बने वो यहाँ नहीं आये....

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