Sunday 26 October 2014

दुर्जनों की संगति से बचो

रामकृष्ण के उपदेश
ईश्वर है। वह अकेला और एक है। उसका प्रकाश बहुविध है। सब मत ईश्वर प्राप्ति के पन्थ हैं। वह साकार भी है और निराकार भी। वह व्यक्त भी है और अव्यक्त भी। माया चलते हुए साँप की तरह है और ब्रह्म स्थिर साँप की तरह। सब शास्त्र जूठे हैं क्योंकि बहुत से लोगों ने उनको अपने मुख से कहा है। किन्तु ब्रह्म जूठा नहीं है क्योंकि वह वाणी से नहीं कहा जा सकता। ईश्वर के प्रति हमारी विकलता वैसी ही होनी चाहिये जैसी कृपण की अपने धन के प्रति। कलिकाल में ईश्वर का नाम मुक्ति का एक मात्र निश्चित साधन है।
भक्तिपूर्वक प्रदत्त छोटे से छोटे दान को भी ईश्वर ग्रहण करते हैं। वह सर्वत्र और सबमें है। परमेश्वर को प्राप्त मनुष्य पार्थिव विषयों से निर्लिप्त होता है। ज्ञान और भक्ति नित्य हैं। ज्ञान का अर्थ है- परोक्षरूप से जानना। विज्ञान का अर्थ है-साक्षात् प्रत्यक्ष रूप से जानना। विज्ञान के अनन्तर जिस भाव का उदय होता है वही असली भक्ति है। विशुद्धज्ञान और भक्ति एक ही वस्तु है। अपने धर्म का पालन करो। अन्य धर्मों से द्वेष मत करो। वितण्डा मत करो। पहले ईश्वर की प्राप्ति करो, फिर संसार का सेवन करो। दुर्जनों की संगति से बचो। साधक को एकान्त सेवन करना चाहिए। झूठे साधुओं से बचो। लाखों में कोई एक सिद्ध होता है। परमहंस ने इसी प्रकार दृष्टान्त के साथ प्राय: छ सौ विषयों पर चर्चा करते हुए अपने उपदेशामृत से सबको तृप्त किया।

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