Saturday 18 October 2014

लंका पहुँचना असंभव था |


राक्षसों के राजा रावण की राजधानी चारों ओर समुद्र से घिरी हुई थी | वहाँ का दुर्ग(किला) भी बहुत विशाल और सुदृढ़ था | उसके चारों ओर बलवान् राक्षसों का पहरा लगा रहता था | इस किले की चतुर्दिक गहरी खाई अभेद्य कवच की तरह उसकी सुरक्षा करती थी, जिसे पार करना अत्यंत दुष्कर था | इसी किले भीतर एक वाटिका थी, जिसे “अशोकवाटिका” कहते थे | रावण ने माता सीता जी का हरण करके उन्हें इसी वाटिका में कैदी बना रखा था | उनके आसपास चारों ओर भयानक राक्षसियों के पहरे पर बैठा रखा था | ऐसे स्थिति में किसी का भी सीताजी के पास पहुँच सकना एकदम असंभव-जैसा था | सबसे बड़ी समस्या समुद्र को पार करने की थी | इसकी चौड़ाई सौ योजन (800 मील) थी | बिना इसको पार किया किसी के लिए भी लंका पहुँचना असंभव था |

सब लोग इस समस्या को लेकर बहुत चिंतित थे | अंगद ने सभी मुख्य सेनापतियों से समुद्र पार करने के विषय में अपनी-अपनी शक्ति और बल का परिचय देने को कहा | अंगद की बातें सुनकर सभी सेनापतियों ने अपनी अपनी सामर्थ्य बताई |
सबकी बातें सुनकर भालुओं के सेनापति जाम्बवान ने कहा “ अब मैं बहुत बूढा हो चला हूँ | मुझमें पहले जैसा बल नहीं रह गया है , लेकिन मैं एक छलांग में नव्वे योजन तक चला जाऊँगा, इसमें कोई संदेह नहीं | अंगदने कहा कि “मैं एक छलांग में इस सौ योजन चोदे समुद्र को पार कर जाऊंगा | लेकिन लौटते समय भी मुझमें इतनी ही शक्ति रह पायेगी, इस बात को लेकर मेरे मन में संदेह है |”

अंगद की बातें सुनकर जाम्बवान् ने कहा—“बालिपुत्र अंगद ! तुम युवराज और सबके स्वामी हो | तुम्हें किसी प्रकार भी कहीं भेजा नहीं जा सकता | अंत में वृद्ध जाम्बवान् ने हनुमान जी को देखा | वह चुपचाप एक किनारे शांत बैठे हुए थे | जाम्बवान् ने कहा—“वीर हनुमान ! तुम इस तरह चुप्पी साधकर क्यों बैठे हो ! तुम पवन देवता के पुत्र हो | उन्हीं के सामान बलवान हो | तुम बल, बुद्धि,विवेक, शील में सर्वश्रेष्ठ हो ! तुम्हारी समता करने वाला तीनों लोकों में कोई दूसरा नहीं है | बालपन में ही तुमने ऐसे-ऐसे अद्भुत काम किये, जो दूसरों के लिए असंभव है | लंका जाकर भगवान् श्रीरामचंद्र जी का सन्देश माता सीताजी तक पहुंचाने के लिए मैं तुम से अधिक योग्य किसी को नहीं समझता हूँ | इस सौ योजन चौड़े समुद्र को लांघ जाना तुम्हारे लिए कौन सी बड़ी बात है ? तुम्हारा तो जन्म ही भगवान् श्रीरामचन्द्र जी का कार्य पूरा करने के लिए हुआ है |”

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