Friday 3 October 2014

मन प्रफुल्ल होता है, शांत होता है

फिर दूसरी अवस्था है, जब कभी-कभी झलकें मिलेंगी। अचानक द्वार खुल जाएगा। अचानक तुम रूपांतरित हो जाओगे; एक तल से दूसरे तल पर पहुंच जाओगे। वह दिखायी पड़ेगा दूर का शिखर-बादल हट गए हैं और गौरीशंकर का उतुंग शिखर दिखायी पड़ गया है; बादल हट गए हैं और चांद दिखायी पड़ गया है; फिर बादल घिर गए हैं। ऐसा कई बार होगा।
झेन फकीर रिंझाई के संबंध में कहा जाता है कि उसे अट्ठारह सौ सतोरी अनुभव हुईं समाधि के पहले। अट्ठारह सौ भी सिर्फ प्रतीक हैं, अट्ठारह हजार भी हो सकती हैं। तो कितनी ही बार झलक हो सकती है। लेकिन झलक सिर्फ खबर है इस बात की कि मैं करीब आ रहा हूं करीब आ रहा हूं; लेकिन अभी आ नहीं गया हूं। मंजिल दिखायी पड़ने लगी है। फिर कई बार खो भी जाती है मंजिल, क्योंकि मन के भावावेग बदलते रहते हैं। कभी ध्यान सध जाता है किसी दिन, मन प्रफुल्ल होता है, शांत होता है, आनंदित होता है। सध जाता है किसी दिन। किसी दिन नहीं सधता, चूक जाता है, बड़ी दूरी हो जाती है। ऐसा कई बार पास आना और कई बार दूर होना हो जाता है।
लेकिन, जिसको झलकें मिलने लगीं, जरा-जरा स्वाद आने लगा, वह अब भटक नहीं सकता। अब एक बात तो पक्की हो गयी कि जिसकी तलाश है, वह है जिसको खोजते थे, वह कल्पना नहीं है; जिसकी तरफ चले थे, वह चाहे मिले न जन्मों-जन्मों तक भी अब, लेकिन है। श्रद्धा का आविर्भाव होता है। और जैसे ही श्रद्धा का आविर्भाव होता है, सतोरी धीरे-धीरे समाधि बनने लगती है। श्रद्धा और सतोरी का जुड़ जाना समाधि है। एक बात तो पक्की हो गयी, बिजली चमक गयी अंधेरी रात में, दिखायी पड़ गया कि रास्ता है, और दूर मंदिर के कलश भी दिखायी पड़ गए। फिर बिजली खो गयी, अंधेरा फिर हो गया; लेकिन अब एक बात पक्की है कि मंदिर है। उसके स्वर्ण-कलश दिखायी पड़ गए। एक बात पक्की है कि रास्ता है। फिर टटोल रहे हैं अंधेरे में, मिले न मिले; कभी मिल भी जाए कभी फिर भटक जाए-लेकिन रास्ता है, मंदिर है। अब चाहे जन्म-जन्म लग जाएं, लेकिन हम व्यर्थ ही नहीं खोज रहे हैं। सत्य है। परमात्मा है। आत्मा है। निर्वाण है।
और जैसे ही यह अनुभव होने लगता है कि है, वैसे-वैसे कदमों का बल बढ़ जाता है; खोज की त्वरा बढ़ जाती है; सब कुछ- दाव पर लगा देने की हिम्मत आ जाती है।
फिर तुम मंदिर के द्वार पर पहुंच गए। सूरज उग गया। अब तुम द्वार पर खड़े हो। सब सीढ़ियां पूरी हो गयीं। यह समाधि की अवस्था है-प्रवेश के एक क्षण पहले। इसके बाद निर्वाण है। इसके बाद फल गिर जाता है। तुम प्रविष्ट हो गए।
द्वार पर भी कोई रुक सकता है। द्वार पर रुकने का कारण वासना नहीं होती, द्वार पर रुकने का कारण करुणा हो सकती है।

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