Sunday 5 October 2014

क्रोध को जबरदस्ती दबायेगे तो पागल हो जायेगे

                         किसको ईष्ट बनाए
[[ पारिवारिक व् व्यक्तिगत पूजा-अनुष्ठान के सन्दर्भ में ]]

. .सिद्धि-साधना भिन्न पथ है ,,किन्तु सामान्य पूजा -अनुष्ठान में सर्वत्र सामान्य लोग अपने कल्याण -सुख -संमृद्धि के लिए देवी-देवता की पूजा करते है ,किन्तु फिर भी उन्हें कभी -कभी अपेक्षित लाभ नहीं मिलता ,कल्याण नहीं होता ,,कभी-कभी तो कष्ट -परेशानिया बढ़ भी जाती है ,इसमें थोड़ी सी नासमझी के कारण लोग भारी अनिष्ट और भाग्य विकार को आमंत्रित करते है ,
.. .अब प्रश्न उठता है की भला कल्याणकारक देवी-देवता अनिष्ट कैसे कर सकते है ,तो यहाँ गलती गलती यह हो रही है की सभी देवी-देवता कल्याणकारी है ,परन्तु वे तब कल्याणकारी है जब आपको उनकी आवश्यकता है ,,आप मोटे है चर्बी बढ़ रही है और लक्ष्मी जी की निरंतर पूजा कर रहे है ,धन सम्पत्ति तो बाद की चीज है ,आप का स्वास्थय बिगड जाएगा ,मोटापा ,मधुमेह हो सकता है ,आप अपनी अकाल मृत्यु और घोर दुःख [शारीरिक कष्ट]को आमंत्रित कर रहे है ,,इसी प्रकार आप में काम-क्रोध-उत्तेजना अधिक है और आप काली जी या भैरव जी की पूजा कर रहे है ,आप कलह -झगड़े -राजदंड और अकालमृत्यु को आमंत्रित कर रहे है ,आपको तो शिव की पूजा करनी चाहिए ,,इसी प्रकार सरस्वती की पूजा भावुक व्यक्तियों के लिए उचित नहीं है ,,चंचल प्रकृति के सक्रीय व्यक्ति के लिए दुर्गा जी की पूजा उनमे अति सक्रियता ,चंचलता बढा देगी जिसे उनकी शान्ति समाप्त हो जायेगी ,,सोचिये यदि सभी देवी देवता सभी के लिए उपयुक्त होते तो उनमे इतनी विभिन्नता क्यों होती ,.
. .याद रखिये आप किसी भी देवी-देवता की पूजा कर रहे है तो इसका मतलब है आप उस देवी देवता को आप अपने शरीर में बुला रहे है ,वास्तव में तो सभी पहले से आपके शरीर के अलग-अलग निश्चित चक्र में है ,पूजा से आप ब्रह्माण्ड से उसकी शक्ति को शरीर में खीच कर उनकी शक्ति बढा रहे है ,जिससे वे जाग्रत हो अधिक क्रियाशील हो सके ,,यदि वह शक्ति पहले से आपके शरीर में अधिक है ,तो अब शरीर का सारा उर्जा समीकरण असंतुलित हो जाएगा ,शक्ति बढने के कारण ही आप विनष्ट हो जायेगे ,,उदाहरण के लिए यदि आप क्रोधी है और भैरव जी या काली जी की शक्ति आमंत्रित कर रहे है ,तो क्रोध की अधिकता ऐसा अनर्थ करवा देगी की आप या तो आत्म ह्त्या कर लेगे या ह्त्या करके जेल चले जायेगे ,कलह-कटुता-झगडा तो आपसे आम हो जाएगा ,क्रोध को जबरदस्ती दबायेगे तो पागल हो जायेगे
.याद रखिये प्रत्येक देवी-देवता ब्रह्माण्ड के एक निश्चित गुण और उर्जा का प्रतिनिधित्व करते है ,उनके मंत्रो ,पूजा पद्धति,उनके रूप में एक विशिष्टता होती है जो उसके गुणों को व्यक्त करती है ,उसकी पूजा करने पर आपमें वह गुण बढने लगते है ,यदि उसकी आपको आवश्यकता नहीं है तो वह आपमें अधिक होने पर कष्ट देने लगेगा ,अनर्थ करने लगेगा ,,अतः जिसकी कमी हो उसे ही बढाना और संतुलन बनाना चाहिए ,जिससे अधिकतम लाभ मिल सके ,..............
. ..विषमय है की ज्योतिष में रत्न ,अंगूठी ,ताबीज ,आदि के चुनाव में इसकी सावधानी बरती जाती है ,परन्तु पूजा-अनुष्ठान में हम जाने किस अंधश्रद्धा के शिकार है ,फलतः परिश्रम भी करते है और लाभ के बदले हानि और अनिष्ट के शिकार हो जाते है .............अतः अपने दैनिक लाभ के लिए आपको ऐसे देवी-देवता का चुनाव करना चाहिए जिनकी शक्ति और गुणों की आपको आवश्यकता है ,नाकि उनकी जिनके गुण आपमें पहले से ही अधिक है 

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