Monday 27 October 2014

यही आत्मा जब ब्रह्म की और आकर्षित होती है

आत्मा ज्ञान का विषय है
आत्मा देह दनित कर्म नहीं अपितु समर्पण का विषय है
आत्मा की माया से युक्ति ही देह धारण का कारण बनती है
आत्मा परमात्मा व् परमात्मा की दिव्या शक्ति माया दोनों की और आकर्षित हो सकती है
माया साधन सुख की धनी व् परमात्मा ब्रह्मा सुख का सूत्र है
आत्मा का केंद्र अहंकार में निहित है इसी कारण वह माया की और प्रभावित हो कर देह धारण कर सुख व् दुःख का पात्र बनती है
यही आत्मा जब ब्रह्म की और आकर्षित होती है तो ब्रह्म सुख में लीन हो मोक्ष की गति को प्राप्त करती है यहाँ समर्पण की ही सत्ता है
जीव कदाचित ब्रह्मा के अति समीप पहुच कर भी मोक्ष से वंचित रह जाता है की वह अपनी स्वयं की गति को निर्मूल नहीं करता
आत्मा भू लोक का भोग पञ्च भूत जनित शारीर धारण कर करती है पर दुःख सुख के भोग उसे शारीर त्याग कर भी शुक्ष्म शारीर से प्राप्त होते है जैसे जीव स्वप्न में सुख व् दुःख की अनुभूति करती है अतार्थ जीव मृत्यु उपरांत भी भी सुख दुःख का भागी रहता है
आत्मा का मूल वाहन कारण शरीर है जो नियत अहंकार से निर्मित है जिसकी कोई भोतिक सत्ता तो नहीं पर परोपूर्ण रूप से आत्मा के बंधन का कारण है
कारण शरीर से मुक्ति ही जीव को पञ्च मुक्ति कोष तक ले जाती है जहा जीव मात्र भक्ति प्रेम व् समर्पण से ब्रह्मा गति को प्राप्त होता है जिसे केवलम मोक्ष की संज्ञा प्राप्त है

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