Tuesday 28 October 2014

शिक्षा देने लगे की मुक्ति ही सर्वोत्तम है

श्रीअद्वैत आचार्य जी एक वृद्ध भक्त की लीला की। किन्तु वे जानते थे की श्रीचैतन्य महाप्रभु जी कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं अर्थात भगवान हैं और इसी भावना से वे हमेशा उन्हें सम्मान देने का प्रयास करते थे जिसकी महाप्रभु जी अनुमति नहीं देते थे और कहते थे, "आप बड़े हैं और मेरे पिता समान हैं, आप मुझे प्रणाम क्यों करते हैं बल्कि मुझे आपको सम्मान देना चाहिए|"

ऐसा कह कर श्रीमहाप्रभु जी ज़बरदस्ती उनकी चरण धूलि लेते जिससे अद्वैत आचार्य जी को अत्यंत दुःख होता । वे यह सोचते, "मुझे कुछ योजना बनानी पड़ेगी जिससे मुझे महाप्रभु जी द्वारा दण्ड प्राप्त हो|"

एक बार श्रीअद्वैत आचार्य जी अपने घर शांतिपुर चले गए और वहां जाकर ज्ञान-मार्ग का प्रचार करने लगे । वे यह शिक्षा देने लगे की मुक्ति ही सर्वोत्तम है और भक्ति का स्तर मुक्ति से नीचे है|

"भक्ति सिद्धांत के अनुसार भगवान स्वतन्त्र हैं, हम उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा करेंगे किन्तु यह भगवान पर निर्भर करता है कि वे हमारी सेवा से प्रसन्न होंगे भी या नहीं इसलिए ऐसी निरर्थक चेष्टा करने से भगवान कि कृपा प्राप्त होगा या नहीं इसमें संदेह है किन्तु मुक्ति प्राप्त करना हमारे हाथों में है, हम अभ्यास करते करते समाधी में प्रवेश कर लेंगे इसलिए मुक्ति प्राप्त करना ही हमारा एकमात्र प्रयोजन है|" इस प्रकार से अद्वैत आचार्य जी शांतिपुर में प्रचार करने लगे|

श्रील भक्ति रक्षक श्रीधर देव गोस्वामी महाराज
यह समाचार भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी तक पहुँचा कि अद्वैत आचार्य जी आपके भक्ति-सिद्धान्तों के विरुद्ध प्रचार कर रहे हैं|

ऐसे में एक दिन श्रीनित्यानंद प्रभु और भगवान श्रीचैतन्य महाप्रभु जी शांतिपुर जा पहुंचे ।

पहुँचते ही श्रीमहाप्रभु जी ने वृद्ध आचार्य कि जम कर पिटाई की और कहने लगे " क्यों ! आपने मेरा आवाहन किया और मुझे अवतीर्ण होने के लिए पुकारा ? केवल आपकी पुकार से ही आकर्षित होकर मैं इस धरातल पर आया हूँ और अब आप ही मेरे विरुद्ध जा रहे हैं, इसका क्या कारण है?"

श्रीलहरिदास ठाकुर यह दृश्य देखकर काँप उठे और कहने लगे, "ये सब क्या हो रहा है, कैसा अविश्वसनीय दृश्य देख रहा हूँ मैं|"

अन्तर्यामी श्री नित्यानंद प्रभु जी वहां खड़े हो कर इस लीला का आनंद लेते रहे।

यह सब होता देख, श्रीअद्वैताचार्य जी की पत्नी श्रीमतीसीता ठकुरानी विरोध करते हुए बोलीं, "नहीं, नहीं ! इतनी कठोरता से इस वृद्ध को मत मारो, यह मर जायेंगे ! रुक जाओ !"

तभी श्री अद्वैत आचार्य जी जोर से हँसने लगे और कहने लगे,: "प्रभो ! आज मैंने आपसे बदला लिया, आप हमेशा मेरी चरण धूलि लेने आते थे किन्तु अब देखिये आप स्वयं मुझे दण्ड देने आए हैं तो बताइये की बड़ा कौन हुआ, मैं या आप ?"

यह सुनते ही श्रीमहाप्रभु जी थोड़ा लज्जित हो गए और श्रीअद्वैत प्रभु हँसने लगे|
जय श्री राम

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