Saturday 18 October 2014

मेरा लक्ष्य इन सबसे ऊपर है

हर व्यक्ति में परमात्मा का अंश तो होता ही है, पर साथ साथ पशुता भी होती है|
अति अल्प मात्रा में ही सही जब तक व्यक्ति में अहंकार है, पशुता का अंश भी उसमें है|
व्यक्ति का कभी भी पतन हो सकता है, उसे पता भी नहीं चलता|
हमारी यह बहुत बड़ी भूल है कि हम अपने राष्ट्रनायकों, महात्माओं और धर्मगुरुओं को पूर्ण समझते हैं| उनकी हर बात को आदर्श और परम सत्य मानते है, जो एक भटकाव है| उनके कहे हुए असत्य को भी सत्य मान लेते हैं| पर वे भी भूल कर सकते हैं और उनका भी आंशिक या गहन पतन हो सकता है|
पूर्णता और सत्य को परमात्मा में ढूंढें , मनुष्य में नहीं, चाहे उसका व्यक्तित्व कितना भी महान क्यों ना हो| सत्य एक अनुभूति है, जो प्रत्येक को अनुभूत करनी पडती है| एक व्यक्ति का सत्य दुसरे के काम नहीं आ सकता, मात्र प्रेरणा दे सकता है|
दुसरे लोग हमें प्रेरणा दे सकते हैं पर सत्य का बोध तो परमात्मा के प्रत्यक्ष साक्षात्कार से ही हो सकता है| और जहाँ तक हमारा प्रश्न है हमें दूसरों के उज्जवल पक्ष से ही प्रेरणा लेनी चाहिए, ना कि उनके अंधकारमय पक्ष से|
हमारा निरंतर प्रयास हो कि हम प्रेममय बनें और उतरोत्तर प्रगति करते रहें| किसी गेंद को सीढियों पर गिरा दें तो वह नीचे कि ओर ही जायेगी| किसी बर्तन को नियमित न माँजें तो उसकी चमक भी कम होती जायेगी| जीवन में स्थिरता नहीं है| या तो उत्थान है या पतन| निरतर उत्थान का प्रयत्न न करते रहेंगे तो पतन निश्चित है|
शुभ कामनाएँ| ॐ नमः शिवाय | ॐ ॐ ॐ ||
पुनश्चः :------ इस लेख को लिखने के पश्चात मैंने देखा कि मेरे स्वयं के अंतर में एक पशु भी छिपा है, एक असुर-राक्षस भी छिपा है और एक देवता भी छिपा है| सभी बाहर आने को प्रयासरत हैं| अवसर मिलते ही इनमें से कोई ना कोई अपनी छाप छोड़ देते हैं| पर मेरा लक्ष्य इन सबसे ऊपर है, और वह है ----- सर्वव्यापी सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान "शिव"|
शिवोहं शिवोहं अहं ब्रह्मास्मि

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