Thursday 17 July 2014

हम जीवन बिता तो लेते हैं

ज़िन्दगी ईश्वर का वरदान है 
और 
पूरी ज़िन्दगी के दरमियान चुने ख्वाब इच्छाओं का पुलिंदा ... 
आसमां से परे और हर ऊँचाई के शिखर को छूने की ख्वाहिश हर दिल में बसी ... 
अनगिनत सपनो से सजी दुनिया जिसके दामन में आंसू भी है तो खुशी भी , 
जख्म भी मिले तो कभी मलहम भी ... 
तो क्या ख्वाहिशों को ही जीने की वजह बना लें या जिन्दगी को छोड़ दें , 
कतरा-कतरा करके फिसलने के लिये ......... 

खुशी का इन्तजार कब तक करें आज बहुत दर्द है , 
लेकिन कल ठीक , इस उम्मीद के साथ दर्द को 
कब तक सहा जा सकता है क्या तब तक 
जब तक आंखो की नमी से पलकों का अंकुरण न हो जाए , 
या तब तक , जब तक अंकुरण बढकर एक बडे पेड़ का आकार ना ले ले ... 
दरअसल कोशिश तो हम करते हैं 
मगर बहानों के ढेर तले अपने सपनों की बलि चढा देते हैं ... 
परिस्थितियों के भवर में अपने सपनो को भी उलझा देते हैं ... 
और अन्तत: परिणाम यह होता है कि हम जीवन बिता तो लेते हैं 
मगर जी नहीं पाते हैं , 
जबकि ज़िन्दगी जीने के लिये होती है , 
बिताने के लिये नहीं .............. 

खुशी एक परिंदे की तरह उड़ती है , 
यदि पंखो में ताकत है 
तो पकड़ लो खुशी को क्योंकि - 
जब आप ज़िन्दगी से बहुत नमृता और दृढता से कहते हैं 
कि मै तुम पर विश्वास करता हूं , 
वही करो जो तुम्हें ठीक लगता है 
तो यकीन मानिये ज़िन्दगी अलौकिक तरीके से आपको जवाब देती है ... 
ऐसा अलौकिक दैदिप्यमान प्रकाश जिससे सम्पूर्ण जीवन प्रकाशित हो जाता है ... 
बस जरूरत है तो पंख फैलाकर खुले आसमान में उड़ने की चाहत की ........... 

परों में है दम तो , नाप लो उपलब्ध नभ सारा 
उड़ने के लिये पंछी , आकाश मांगा नहीं करते 

और यदि गौर किया जाये तो परिदें और 
इन्सान की ख्वाहिश भी तो एक सी होती है 
आसमां छूने की , अपना मनचाहा मुकाम पाने की , 
परिंदे अपने पैरों से नहीं अपने पंखो की बदौलत मंजिल पाते हैं ... 
इन्सान के पास भी ये पंख है - 
अपने ख्वाबो के पंख बस जरूरत है 
तो पलकों के पेड़ पर ख्वाबों के परिंदे बसाने की , 
फिर हर मंज़िल तुम्हारी है और हर रास्ता तुम्हारा हमराही .......... 

जब पंछी विपरीत हवाओं में उड़ सकते हैं 
तो हम विपरीत परिस्थितियों में क्यों नहीं ............ 

सपने मेरे पलकों पर हैं पले 
ऊंचे इतने हैं कि आसमां से परे 
चाँद को छू रही आवाज़ है 
ये मेरे ख्वाबो की परवाज़ है .........

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