Wednesday 23 July 2014

स्थान हृदय में होता है

पूर्ण संसार माता-शक्ति और परमात्मा शिव बाबा की एक भावात्मक रचना है। प्रत्येक जीव आत्मा को अपने भाव व्यक्त करने के लिए शरीर प्रदान किया है। मनुष्य को ही परमात्मा शिव, सृष्टि के कल्याण कार्यों हेतु उत्पन्न करते हैं। मनुष्य का निर्माण सृष्टि के ही पंच तत्वों से होता है। मनुष्य शरीर भिन्न-भिन्न पुर्जों से बना है और प्रत्येक पुर्जें का कार्य भिन्न है। मनुष्य शरीर में तीन वस्तुएं प्रमुख होती हैं। आत्मा, मन, बुद्धि।............

आत्मा (Spiritual Organ) Soul............. 

आत्मा एक ज्योति, अग्नि, प्रकाश को ही प्रतिभाषीत करती है। मानव शरीर में भाव उत्पन्न करने का कार्य आत्मा से ही होता है। भावनाओं का मन्थन मस्तिष्क में मन और बुद्धि में होता है और प्राणी जीव कर्म सम्पन्न करत है। भावनाएं अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की उत्पन्न होती हैं। आत्म जीव के प्राण मानी जाती है। आत्मा का स्थान हृदय में होता है। खाये गये तत्वों से ऊर्जा का निर्माण भी आत्मा नाम की ज्योति से होता है जो ऊर्जा निंद्रासन में मस्तिष्क में स्थित मन को दे दी जाति हैऔर मन द्वार प्राणी कर्म करके उस ऊर्जा को नष्ट करता है। आत्मा अनश्वर होती है। आत्मा परम धाम सेहि पृथ्वी पर आती है। संसार के सभी प्राणियों में एक जैसे भाव उत्पन्न करने वाली आत्माएं ही होती हैं।  

मन (Mental Organ) Mind......................... 

मन की रचना उसको दिये गये सृष्टि कल्याण के संकल्प के आधार पर एक शरीर के रूप में की जाती है। मन से ही शरिर क चलन संभव हो पाता है। जिस प्रकार से हमारी आत्मा अनश्वर है उसी प्रकार से मन भि अनश्वर होता है। मन से विकसित ऊर्जा की शक्तियों से चैतन्यता शरीर में होती है। मन से प्रत्येक शरीर का अंग ऊर्जा प्राप्त करता है।मन से प्राणी जीव समझने की क्रिया सम्पन्न करता है। अच्छे और बुरे का ज्ञान मन 

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