Wednesday 16 July 2014

उसी में कैद हो जाते हैं

एक बाग़ में एक वृक्ष की दो प्रमुख डालियाँ जिनमे एक हरी भरी थी दूसरी सूख गयी थी | हरे पर कोयल अपना कूहू कूहू कर राग अलापती तो कठफोड़वा पूरे दिन केवल सूखे पर अपनी चोंच मारा करता और उस सूखे हिस्से में सूराख करता | 
दोनों में अक्सर विवाद हो जाया करता | 
कठफोड़वा कहता सब बेकार है कितना ही कुरेद डालो इस काठ का अंत नहीं मेरी चोंच कितनी तेज और नुकीली है जब इससे इसका पार नहीं मिलता और तो और इसमें कोई रस नहीं यह सूखा सा नीरस है ..सत्य यह है कि संसार मिथ्या है |
वही कोयल इस बात से राजी न थी ... वह कहती तुमने इन हरे-भरे पत्तों को नहीं देखा इस ओर आके तो देखो ....देखो कैसे कैसे मधुर फल लगे है ....इन रसीले फलों को न भोग कर तुम इस की अवहेलना कर रहे हो जिस डाल को तुम नीरस कहते हो वह हरा भरा ही था आज वह सूखा है किन्तु उसी का दूसरा भाग तो हरा ही है ...इसे भी छोडो जिस डाल को तुम कुरेद कर कुछ पाना चाहते हो उससे गिरे हुए पहले के फलों के बीजों को देखो वो आज नए वृक्ष बन कर खड़े हैं सत्य यह है कि यह संसार इस वृक्ष की भाँती ही सत्य है जो परिवर्तित तो होता है किन्तु मूल स्वरूप नहीं बदलता |
इन के झगड़े को सुनने वाला एक ..... भौंरा वहाँ गुनगुन गुनगुन करते उड़ रहा था .....उसने अपनी मस्ती में ही दोनों से कहा भाई ....व्यर्थ झगड़ा न करो | यह संसार परिवर्तनशील है जो संसार की आसक्ति से परे चला जाता है उसे सब नीरस सा लगता है उसकी दृष्टि में संसार मिथ्या है ,परन्तु अन्य सभी के लिए यह संसार ही सत्य है | इस सत्य के अनुरूप जो स्वयम को ढाल लेता है , वही इस संसार का सही मतलब समझ पाता है | मुझे देखो मैं फूलो का रसपान तो अवश्य करता हूँ पर रहता सूखे कोटर में हूँ किन्तु बहुत से मेरे मित्र फूलों के रस का पान करने में इतने मस्त हो जाते हैं कि वो उसी में कैद हो जाते हैं ... और फिर बंधन से छूटने को तडपते हैं |
सो संसार में रहकर अपनी आवश्यकता भर ही रसभोग करो वह भी करो तो आसक्ति को त्याग कर, फिर तुम बंधन में नहीं पड़ोगे ...तभी तुम सही निर्णय ले पाओगे कि सत्य क्या है |

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