Monday 21 July 2014

सिर्फ़ नज़र का अन्तर है..

“गुरू- जो गुफ़ा में रोशनी कर दे..
जो खुद से रूबरु करा दे...
जो स्वयं से मिला दे..
जो सत्य का रास्ता दिखाये..
जो झूठे आडम्बरों को हटा दे..
जो अपना अस्तित्व हमें आइने की तरह दिखा दे..
जो सच्चे हमराही की तरह हमें आगे बढ़ाता रहे..
पर कभी हमें अपने पर आधारित न बनाये...
बल्कि सभी आधारों से मुक्त होने का नया मार्ग दिखाये..
पर जो कभी अपने में न अटकाये..
बल्कि हमें सभी जगह भटकने से रोके...
वहीं सच्चा गुरू है..जो हमेशा हमारे सच्चे दोस्त की तरह हमें प्यार से आगे बढ़ाये..जो हमें अपने में विश्वास करना सिखाये..और हमारे आत्मविश्वास को बल प्रदान करे..जो हमें अपनी तस्वीर नहीं बल्कि हमें अपने अन्तर्मन की तस्वीर दिखाये..
जो अपने में अटकाकर अपनी पूजा करवाये या अपने से बांधकर रखे...वो सच्चा गुरु नहीं..जो कभी भक्त नहीं बल्कि दोस्त बनाये वहीं सच्चा गुरू है..अगर भक्त बनायेंगे, तो हमेशा उसका स्थान गुरू से नीचे ही होगा..पर जो सच्चा गुरू होगा, वो कभी नीचे-ऊपर का अन्तर नहीं दिखायेगा..हमेशायहीं बोलेगें कि जो तुम है, वहीं मैं है...जो मेरे अन्दर है..वहीं तेरे अन्दर है..तो तू छोटा और मैं बड़ा कैसे..?? सिर्फ़ नज़र का अन्तर है...सिर्फ़ अन्तर्मन की आंखें खोलने की देर है...बस तू मेरे साथ चल..मेरी राह पर एक दोस्त की तरह मेरा हाथ थाम ले...तभी तू वो अनुभव करेगा..जो मैंने किया है..अगर शुरू से तू खुद को मुझसे छोटा समझेगा तो वो असीम आनन्द कभी महसूस नहीं कर पायेगा..क्योंकिवो भाव तेरे अन्दर जन्म ले चुकेगा कि तू मुझसे छोटा है.. और खुद को हमेशा मेरे पीछे ही खड़ा पायेगा.

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