Friday 18 July 2014

तुम एक शरण स्वीकार करो

जो काल के भी काल व मृत्यु की भी मृत्यु है । जो सभी को अभय प्रदान करने वाले है, भय भी जिनसे भयभीत होता है, वह श्री कृष्ण माँ यशोदा के भय से रो रहे है। कारण है -- प्रेम । यह प्रेम ही है जो , दुर्योधन की मजबूत जंजीरों से न बंधने वाले श्री कृष्ण को , माँ यशोदा की मात्र तीन अंगुल लंबी कमजोर रस्सी से बंधने के लिए मजबूर कर देता है। विदुर के घर जाना हो या अर्जुन का सारथी बन जाना अनेकों उदाहरण है । यह प्रेम कैसा ? केवल उसी को अपना मानो, पूर्ण विश्वास केवल उसी पर हो, उसकी कृपा पात्र करने के लिए जो भी साधन व रीति उसने बताए, उन्हे ही करो । फिर देखो कमाल -- ऐसा कौन सा क्षेत्र होगा , जहा तुम्हें कोई पराजित कर सके ? तुम्हारी ऐसी कोई इच्छा नहीं होगी जो पूरी न हो सके। लेकिन पहले प्रेम तो पूर्ण होना चाहिए न । धर्मनिष्ठता होनी चाहिए न । बाकी अगर ये करोगे कि, साई भी अपना, फलाना फकीर भी अपना, जीसस भी अपना, इसकी भी कृपा चाहिए, उसकी भी चाहिए, ऐसे स्वार्थी बुद्धिहीनों को श्री भगवान की कृपा स्वप्न में भी प्राप्त नहीं होती। इसीलिए ऐसे लोग जीवन के रहते, सदैव दुखो के बीच भटकते है, और मृत्यु के पश्चात भूत-प्रेतादि बनकर । इसलिए --- तज विविध मत केवल उनकी तुम एक शरण स्वीकार करो 

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