Thursday 31 July 2014

१ जैसी प्रीत कुटुम्ब से, तैसी गुरु स्यों होय ।
कहे कबीर वा दास का, पल्ला ना पकङे कोय ।।
2 प्रीती बहुत संसार में, नाना विधि की होय ।
उत्तम प्रीति सो जानिये, जो सतगुरु से होय ॥
3 गुणवंता और द्रव्य की, प्रीत करे सब कोय ।
कबीर प्रीति वो जानिये, जो इनसे न्यारी होय ॥
4 जोगी जंगम सेवङा, अरू सन्यासी दर वेश ।
बिना प्रेम पहुंचे नहीं, दुर्लभ सत गुरु देश ॥
5 प्रीतम को पाती लिखूं, जो कहीं होय बिदेश ।
तन मे मन मे नयन में, तो का को क्या सन्देश ॥

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