Friday 11 July 2014

तो कभी भी समर्पण नहीं कर सकोगे

आध्यात्मिक इतिहास साक्षी है कि आज तक जितने भी लोगो को परमात्मा कि प्राप्ति हुई , उन सभी ने परमात्मा की प्राप्ति के लिए जीवन में आनंद को मार्ग के रूप में चुना ! जब भी तुम्हारे जीवन में आनंद चरम तक पहुच जायेगा तभी तुम्हारे जीवन में परमात्मा अर्थात परमानन्द का मार्ग प्रसस्थ हो सकेगा!!
जिन लोगो ने जीवन कर्म काण्ड को व् पूजा को अपनाया है या अपना रहे है , वे निराकार , ब्रह्म अर्थात परमात्मा की प्राप्ति हेतु प्रयत्नशील नहीं है अर्थात बिना उद्देश्य के वे कर्मकांड या पूजा नहीं कर रहे है ! उन सभी के जीवन में इस सबको करने के पीछे एक उद्देश्य है और वह उद्देश्य है कुछ प्राप्ति का?
सम्भव है कि कुछ लोग उस उद्देश्य को समग्र रूप से या आंशिक रूप से प्राप्त कर भी सकते है , जिसके लिए उन्होंने प्रयत्न या कार्य किया लेकिन मानव जीवन के उस उद्देश्य अर्थात परम तत्व की प्राप्ति से वंचित रह जायोगे ! जिसे संतो , महापुरुषो , ऋषियो , महात्माओ व् धर्म ग्रंथो ने कहा है और बार- बार चेताया भी है ,कि 
मनुष्य जन्म अनमोल रे, माटी में न रोल रे!
अब के मिला है फिर न मिलेगा , कभी नहीं कभी नहीं रे…। 
जैसे बीज से वृक्ष बनता है यानि जिसका बीज तुम जमीं में रोपित करोगे उसी के रूप में वृक्ष बनेगा ! पूजा कथा या कर्म कांड एक मांग है , कुछ पाने के लिए ही तुम इन सभी को या इनमे से किसी को भी करते हो ,और मांग जिसकी भी तुम करोगे उसे ही तुम पा भी सकते हो? हालाकि यह जरूरी नहीं है कि पा ही लोगे? लेकिन यदि परमात्मा या आस्तित्व ने तुम पर कृपा की तो उससे पृथक नहीं पा सकोगे जिसे तुमने माँगा होगा ? अनेक संतो ने, गुरुओ ने कहा है, कि गुरुनानक :- जो मांगे ठाकुर अपने से सोई -सोई देवे। नानक दा मुख से जो बोले इंहा - उंहा सच होवे! 
जब परमात्मा के सृजन से यह संसार , यह ब्रह्माण्ड चल रहा है बिना किसी नियंत्रण के , अनेक जीव जी रहे है और अपने कर्मो के अनुसार नियंत्रित भी हो रहे है और भविष्य में भाग्य के रूप में भोगेंगे भी! हालाकि विज्ञानं का आकलन है कि पचास हजार से भी ज्यादा पृथ्वियां और सभी गृह अनुपात में इस ब्रह्मड में मौजूद है तो परमात्मा के पुत्र व् पुत्रिया होने के बाद भी परमात्मा तुम्हारी मांग पूरी क्यों नहीं करेगा? तुम आरती अर्थात पूजा के रूप में किये जेन वाले समर्पण में भी यही मांगे हो। मांग की अर्थात स्वार्थ कि इंतहा कर दी तुमने और तथाकथित तुम्हारे गुरुओ ने, तुम्हारा भला करने का ढोंग पीटने वालो ने, जिन्होंने प्रार्थना को यह रूप दिया! 
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे !
भक्त जनो के संकट क्षण में दूर करे! ( हमारे संकट दूर करो, चाहे दुसरो को कितने ही संकट दे दो)
जो धावे फल पावे दुःख विनसे मनका (जो भी तुम्हारा ध्यान करेगा उसको कोई भी दुःख नहीं होगा )
सुख संपत्ति घर आवे, कस्ट मिटे तनका ? हे प्रभु सुख भेज, संपत्ति दे और हमें कोई भी कस्ट न हो क्योकि हम तुम्हारी पूजा कर रहे है)
कितने स्वार्थी हो तुम? कि प्रार्थना में भी सुख और संपत्ति ही मांग रहे हो? 
पूजा में हम यानि तुम और प्रभु दो होते है यानि तुम अलग और प्रभु भी तुमसे 
अलग है यही तुम समझते हो। क्योकि तुम मांग उसी से सकते हो जो तुमसे अलग हो? कभी खुदसे तुमने कुछ माँगा है?नहीं जिससे तुम मांगते हो वह तुमसे दूर हो जाता है! जबकि भक्ति मार्ग है प्रेम का, समर्पण का है जंहा जीवन में जो भी तुम्हारे है व् आता है वह सब प्रभु की कृपा हो जाता है क्योकि तुमने जो भी किया वह तुम्हारी मांग नहीं थी अपितु तुम्हारा समर्पण था प्रभु के लिए!
तुम्हारे जीवन में जो भी है यदि तुम उसे अपने प्रयास से प्राप्त हुआ समझते रहोगे तो कभी भी समर्पण नहीं कर सकोगे? एक मार्ग जिसे तुम अपने जीवन में अपनाते हो वह है मांग का मार्ग, अर्थात इच्छा कुछ होने की , कुछ बनने की और कुछ पाने की ! इस सबके लिए तुम पूजा और कर्मकांड करते हो ! दूसरा है समग्र के साथ एक हो जाने का, समग्र में समाहित हो जाने का , अर्थात तुम्हारे या हमारे जीवन में जो भी कुछ है वह तुम्हारी योग्यता नहीं है अपितु प्रभु की कृपा है, इससे तुम्हारे प्रभि से पृथक होने की पहचान में प्रशनवाचक चिन्ह लगा होने का अहसास रहेगा! और तुम खुद को व् जीवन में जो भी है सबको उसकी कृपा समझ सकोगे! 

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