Tuesday 15 July 2014

जीव नाना प्रकार के क्लेश भोगते हैं।

क्या शिव लिंग का दुग्धाभिषेक दुग्ध की बर्बादी है 
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यदि भगवान विश्वनाथ न होते तो यह जगत अंधकारमय हो जाता, क्योंकि प्रकृति जड़ है और जीवात्मा अज्ञानी। अतः इन्हें प्रकाश देने वाले परमात्मा ही हैं। उनके बंधन और मोक्ष भी देखे जाते हैं। अतः विचार करने से सर्वज्ञ परमात्मा शिव के बिना प्राणियों के आदिसर्व की सिद्धि नहीं होती। जैसे रोगी वैद्य के बिना सुख से रहित हो क्लेश उठाते हैं, उसी प्रकार सर्वज्ञ शिव का आश्रय न लेने से संसारी जीव नाना प्रकार के क्लेश भोगते हैं।
शिव का अर्थ है कल्याण ...समस्त मानव श्रृष्टि , पशु श्रृष्टि सहित समस्त चेतन श्रृष्टि शिव रूप ही है । शिव लिंग पर जब हम दुग्धाभिषेक करते हैं तो वह वास्तव मे उदारता के भाव को बढ़ाने के लिए ही होता है । भगवान मै आपके शिव रूप मानव पर आपके द्वारा ही प्रदत्त दुग्ध को चढाने का निमित्त बनूँ यह कामना ही शिव लिंग पर दुग्धाभिषेक के पीछे होनी चाहिए । " त्वदीय वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये " ।
कुछ तथाकथित अंग्रेजी पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी अभिषेक को ढोंग और दूध की बर्बादी मानते हैं और अज्ञानता के कारन वैज्ञानिक पहलु को समझ ही नहीं पाते। ऋतुओं के खाद्य पदार्थों पर पड़ने वाले प्रभाव कोअनदेखा करना मुर्खता है। हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है ! ये इस देश का दुर्भाग्य है कि हमारी परम्पराओं को समझने के लिए जिस विज्ञान की आवश्यकता है वो हमें पढ़ाया नहीं जाता और विज्ञान के नाम पर जो हमें पढ़ाया जा रहा है उस से हम अपनी परम्पराओं को समझ नहीं सकते !जिस संस्कृति की कोख से मैंने जन्म लिया है वो सनातन है, विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया है ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें !
हिन्दू ही जब इस बात को लिखे की शिवलिंग पर दूध डालना क्या दूध की बर्बादी है तो मुझे एसे हिन्दुओ पर तरस आता है। यदि आपकी मानसिकता नास्तिक की है तो आप कम से कम अनाप सनाप लिखकर अपनी मानसिकता का परिचय न दे । शिवलिंग पर आप 10 रूपये का दूध न चढ़ा सकते हो मत चढ़ाए , आप तो 15रूपये का दिन में 2बार रजनीगन्धा खाकर या सिगरेट पीकर या शाम को दारू बियर पीकर अपने शरीर को बर्बाद करे पर भगवान के लिए समर्पित न हो सकते हो तो कम से कम मुसलमान न बने ।याद रखे देने वाला और लेने वाला भगवान शिव ही है । शिव ही भगवान गणेश का जन्मदाता है और शिव ही श्मशान है ।
आज मात्र ईद के दिन लाखों पशुधन को काटा जाता है क्या उन शिवनिंदकों को अक्ल घास चरने जाती है । क्या कभी अपने समाज में आवाज उठाया ? आज पूरे भारत में करीब 1682 कत्लखाना है , क्या उनका कभी इस ओर ध्यान गया कि इतने पशुधन के कट जाने के बाद भविष्य में दूध कहाँ से मिलेगा ??? धिक्कार है ऐसे ओछी सोच वाले लोगों पर।
शिवरात्रि पर एक दिन दूध चढ़ा दिया तो गरीब बच्चो को दूध नहीं मिलेगा , कोई मुझे यह बता दे की गौ के काटने के बाद देश के बच्चो को दूध कैसे मिलेगा ??
शिवरात्री में एक एक समय का दूध बेकार हो जाता है , लेकिन ईद पर गौ काटने के बाद तो पूरे जीवन का दूध बेकार हो जाता है उसका क्या ??
देश को बेच कर खा जानेवाले या केवल आने उदरपूर्ति की चिंता में डोलते नरपशु शिवनिंदा करते है ,दूध की बरबादी कहते हैं| ----भवानहो द्वेष्टि शिवं शिवेतरः ---४/४ / १४ , वे स्वयं अशिव हैं |--- ये सब हमारे यहाँ बैठी धर्म निरपेक्षता रुपी राक्षसी की माया है |
अभिषेक करने का वैज्ञानिक कारण :-
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आयुर्वेद के अनुसार वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और इस महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. इस महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिएं जिनसे वात बढे, इसलिए है। इस महीने में पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिएं !और दुधारू पशु क्या खाते हैं ? सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं. इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है ! इसलिए आयुर्वेद कहता है कि इस महीने में (सावन ) दूध नहीं पीना चाहिए इसलिए इस मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे ! इस तरह हर जगह सावन में अभिषेक करने से से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था! इसको तो राष्ट्रीय पर्व घोषित होना चाहिए ! लेकिन कुछ लोग इसे साम्प्रदायिकता मानते हैं ।

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