Friday 11 July 2014

पूजा के मन्त्र बन जाये


आत्मा त्व गिरिजा मति, श्हचर प्राणम शरीरम् गृहं !
पूजा ते विष्योय भोग रचना , निद्रा समधास्तिथ !!
संचार परदौ प्रदीक्षण विधि , स्त्रोतानि सर्व गिर !
यद् -यद् कर्म करोमि , अखिल शम्भोतबाराधनम् !! (आदि शंकराचार्य)
भावार्थ :- आत्मा अर्थात शिव और गिरिजा अर्थात माता पार्वती , यानि शरीर और आत्मा के द्वारा यह शरीर बना है जिसमे शरीर के रूप में भगवन शिव और बुद्धि के रूप में माता पार्वती विराजमान है , जिसके कारण शरीर रुपी घर में प्राण बस रहे है ! हे प्रभु क्योकि मै एक गृहस्थ और सांसारिक व्यक्ति हू और अपने जीवन का निर्वाह करने व अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाहण करने के कारन में इतना व्यस्त हो गया कि तुम्हारी पूजा और कर्म आदि नियमित और विधान के साथ नहीं कर सकता तथा विषय भोग आदि करना मेरी सांसारिक होने कि बाध्यता है अत : प्रभु मेरी निद्रा को ही मेरी पूजा और प्रार्थना बना !
ये संसार में जीवन यापन करने के लिए मै जो भी अपनी जीव्या से बोलता हू प्रत्येक मेरे बोले गए शब्द को अपने शलोक बना अर्थात जो भी मै कहे वे सब तुम्हारी प्रार्थना और पूजा के मन्त्र बन जाये !
और प्रभु जी जब - जब और जो जो भी मै कार्य करू इस जीवन को व इस परिवार को चलाने व परिवार का पालन पोषण करने के लिये और इस संसार में अपना यागदान के लिए जो भी मै कार्य करू प्रभु उसे ही मेरी आराधना समझना ! 
गृहस्थ होने के कारण यदि आपके पास भी नियमित और विधान के अनुसार पूजा करने का तो इन भावो के साथ इस मन्त्र का नियमित उच्चारण करे ! 

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