Wednesday 30 July 2014

तुम्हें केवल मृत्यु का अनुभव होगा।

इस झूठ ने सिंघासन पर कब्जा जमा लिया है। इसे वहां से हटाना होगा। एकांत में रहने से, जो भी झूठ है सब समाप्त हो जाता है। और जो भी समाज द्वारा दिया गया है, सब झूठ है। वास्तव में, जो भी दिया गया है, सब झूठ है; और जो भी जन्म के साथ आया है, सत्य है। जो भी तुम स्वयं अपने तईं जो हो,  जो किसी दूसरे द्वारा दिया नहीं गया है, वास्तविक है, प्रामाणिक है। लेकिन झूठ को जाना चाहिए और झूठ में तुम्हारा बहुत अधिक निवेश है। इसमें तुमने इतना अधिक निवेश कर रखा है, तुम इसकी इतनी देख-भाल करते हो: तुम्हारी सारी आशाएं इसी पर टगीं हैं इसलिए जब यह घुलने लगता है, तुम भयभीत हो जाते हो, डर जाते हो और कांपने लगते हो: 'तुम स्वयं के साथ क्या कर रहे हो? तुम अपना सारा जीवन, सारे जीवन का ढाचा नष्ट कर रहे हो।'

भय लगेगा। लेकिन तुम्हें इस भय से गुजरना होगा: तभी तुम निडर हो सकते हो। मैं नही कहता कि तुम बहादुर हो जाओगे, नहीं, मैं कहता हूं तुम निडर हो जाओगे।बहादुरी भी भय का ही एक हिस्सा है। तुम कितने ही बहादुर हो, भय पीछे छिपा ही रहता है। मैं कहता हूं, 'निडर'। तुम बहादुर नहीं हो जाते; जब भय न हो, बहादुर होने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती। बहादुरी और भय दोनों अप्रसांगिक हो जाते हैं। दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए तुम्हारे बहादुर आदमी सिवाय इसके कि तुम सिर के बल खड़े हो और कुछ नहीं हैं। तुम्हारी बहादुरी तुम्हारे भीतर छिपी है और तुम्हारा भय सतह पर है; उनका भय भीतर छिपा हुआ है और उनकी बहादुरी सतह पर है। इसलिए जब तुम अकेले होते हो, तुम बहुत बहादुर होते हो। जब तुम किसी चीज के विषय में सोचते रहते हो, तुम बहुत बहादुर होते हो, परंतु जब वास्तविक स्थिति आती है, तुम भयभीत हो जाते हो।

कोई निडर केवल तभी हो सकता है जब सभी गहरे भयों से गुजर चुका हो -- अहंकार को विसर्जित कर चुका हो, अपनी छवि को विसर्जित कर चुका हो, अपना व्यक्तित्व विसर्जित कर चुका हो। यह मृत्यु है क्योंकि तुम नहीं जानते कि इससे कोई नया जीवन उभरने वाला है। इस प्रक्रिया के दौरान तो तुम्हें केवल मृत्यु का अनुभव होगा। वह तो तुम जैसे हो--एक झूठे व्यक्तित्व की तरह, मर जाओगे, केवल तभी जान पाओगे कि मृत्यु तो मात्र अमरत्व के लिए एक द्वार थी। लेकिन यह अंत में घटेगा, प्रक्रिया के दौरान तो तुम केवल मरने का अनुभव करोगे।वह हर वस्तु जिसको तुमने इतना प्यार किया है, तुमसे दूर कर दी जाएंगी -- तुम्हारा व्यक्तित्व, तुम्हारी धारणाएं, वह सब जो तुमने सोचा था कि सुंदर है। सब कुछ तुम्हें छोड़ जाएगा। तुम पूर्ण रूप से उघाड़ दिए जाओगे। तुम्हारी सभी भूमिकाएं और तुम्हारे सभी आवरण छीन लिए जाएंगे। इस प्रक्रिया में भय होगा, लेकिन यह भय मूल है, आवश्यक और अपरिहार्य है -- हर एक को इससे गुजरना पड़ता है। तुम्हें इसे समझना चाहिए परंतु इससे बचने का प्रयास नहीं करना चाहिए, इससे भागने का प्रयत्न मत करो क्योंकि भागने का हर प्रयास तुम्हें फिर वापस ले आएगा। तुम फिर व्यक्तित्व में वापस लौट जाओगे।

जो लोग गहरे मौन और एकांत में जाते हैं, वे सदा मुझसे पूछते हैं, 'इसमें भय लगेगा तब क्या करना चाहिए?' मैं उनसे कहता हूं कि कुछ भी नहीं करना है, बस इस भय को जीना है।

यदि कंपन आता है तो कंपो। इसे क्यों रोकना? यदि भीतर भय लगता है और तुम इस भय से कंप रहे हो तो इसके साथ डोलो। कुछ न करो। मात्र इसे घटने दो। यह अपने-आप चला जाएगा। यदि तुम इससे बचोगे...और तुम  इससे बच सकते हो। तुम राम,राम,राम जपना शुरू कर सकते हो; तुम किसी भी मंत्र को पकड़ सकते हो जिससे तुम्हारा मन हट जाए। तुम शांत हो जाते हो और भय वहां नहीं रह जाता; तुम अचेतन में धकेल दिए जाते हो। यह बाहर आ रहा था -- जो अच्छा था, तुम इससे मुक्त होने जा रहे थे -- यह तुम्हें छोड़ने वाला था और जब यह तुम्हें छोड़ता है, तुम कंपने लगते हो।यह स्वाभाविक है क्योंकि शरीर और मन के प्रत्येक सेल से कुछ ऊर्जा जो सदा से मौजूद थी, जो नीचे धकेल दी गई थी, वह मुक्त हो रही है। इससे हलन-चलन और कंपना आएगा, यह ठीक भूचाल जैसा होगा। इससे पूरी आत्मा अव्यवस्थित हो जाती है। लेकिन इसे होने दो। कुछ भी न करो। यह मेरी सलाह है। कोई मंत्र भी मत दोहराओ। इसके साथ कुछ भी मत करो क्योंकि जो भी तुम करोगे वह दमन बनाएगा। इसे मात्र घटने दो, यह तुम्हें छोड़ देगा -- और जब यह तुम्हें छोड़ देगा, तुम बिल्कुल दूसरे ही आदमी होगे।     

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