Wednesday 9 July 2014

एक आनंद बना रहे

कभी कभी गुरु या ईष्ट देव अपने सूक्ष्म शरीर से साधक के शरीर में प्रवेश करते हैं और उसे प्रबुद्ध करते हैं. प्रारम्भ में साधक को यह महसूस होता है कि आसपास कोई है जो अदृश्य रूप से उसके साथ साथ चलता है. कभी कोई सुगंध, कभी कोई स्पर्श, कभी कोई ध्वनि सुनाई दे सकती है, जिसका पता आसपास के किसी आदमी को नहीं लगेगा, उनका कोई वास्तविक कारण प्रत्यक्ष नहीं दिखाई देगा. इसके बाद जब यह अभ्यास दृढ हो जाता है तो शरीर का कोई अंग तेजी से अपने आप हिलना, रोकने की कोशिश करने पर भी नहीं रुकना और उस समय एक आनंद बना रहना, इस प्रकार के अनुभव होते हैं. तब साधक यह सोचता है कि यह क्या है? कहीं साधना में कुछ गलत तो नहीं हो रहा. यह किसी दैवीय शक्ति का प्रभाव है या mआसुरी शक्ति का? तो इसका उत्तर है कि यदि दांया अंग हिले तो समझना चाहिए कि दैवीय शक्ति का प्रभाव है और यदि बांया अंग हिले तो समझना चाहिए कि आसुरी शक्ति का प्रभाव है और वह शरीर में प्रवेश करना चाहती है. साथ ही यदि एक आनंद बना रहे तो समझें कि दैवीय शक्ति प्रवेश करना चाहती है. किन्तु यदि क्रोध से आँखें लाल हो जाएँ, मन में बेचैनी जैसी हो तो समझना चाहिए कि आसुरी शक्ति है. इस प्रकार जब पहचान हो जाए तो यदि आसुरी शक्ति हो तो उसे बलपूर्वक रोकना चाहिए. इसके लिए भगवान् व गुरु से प्रार्थना करें कि वह इस आसुरी शक्ति से हमारी रक्षा करें व उसे सदा के लिए हमसे दूर हटा दें. यदि दैवीय शक्ति है तो आपको प्रयत्न करने पर शीघ्र ही यह पता लग जाएगा कि वे कौन हैं और आगे आपको क्या करना चाहिए ............जब गुरु या ईष्ट देव की कृपा हो तो वे साधक को कई प्रकार से प्रेरित करते हैं. अन्तःकरण में किसी मंत्र का स्वतः उत्पन्न होना व इस मंत्र का स्वतः मन में जप आरम्भ हो जाना, किसी स्थान विशेष की और मन का खींचना और उस स्थान पर स्वतः पहुँच जाना और मन का शांत हो जाना, अपने मन के प्रश्नों के समाधान पाने के लिए प्रयत्न करते समय अचानक साधू पुरुषों का मिलना या अचानक ग्रन्थ विशेषों का प्राप्त होना और उनमें वही प्रश्न व उसका उत्तर मिलना, कोई व्रत या उपवास स्वतः हो जाना, स्वप्न के द्वारा आगे घटित होने वाली घटनाओं का संकेत प्राप्त होना व समय आने पर उनका घटित हो जाना, किसी घोर समस्या का उपाय अचानक दिव्य घटना के रूप में प्रकट हो जाना, यह सब होने पर साधक को आश्चर्य, रोमांच व आनंद का अनुभव होता है. वह सोचने लगता है की मेरे जीवन में दिव्य घटनाएं घटित होने लगी हैं, अवश्य ही मेरे इस जीवन का कोई न कोई विशेष उद्देश्य है, परन्तु वह क्या है यह वो नहीं समझ पाटा. किन्तु साधक धैर्य रखे आगे बढ़ता रहे, क्योंकि ईष्ट या गुरु कृपा तो प्राप्त है ही, इसमें संदेह न रखे; क्योंकि समय आने पर वह उद्देश्य अवश्य ही उसके सामने प्रकट हो जाएगा. .................साधना के मार्ग पर बिना गुरु के चल पाना संभव नहीं है |साधन के दौरान होने वाले अनुभव का विशेषण गुरु ही कर पाता है और आगे का मार्गदर्शन तदनुरूप करते हैं ,|साधना में आने वाले विघ्न बाधाओं का निवारण गुरु द्वारा ही संभव हो पता है |कभी कभी ऐसे भी अवसर आते हैं की साधक विचलित होने लगता है और गुरु की अत्यंत आवश्यकता महसूस करता है |साधित होने वाली शक्ति को कैसे धारण किया जाए इसकी तकनिकी गुरु ही मार्गदर्शित करता है ,अगर मार्गदर्शन न मिले तो आई शक्ति न नियंत्रित अथवा धारण होने पर बिखर भी सकती है और ऊर्जा परिपथ को बिगाड़ भी सकती है |कभी कभी गुरु के ही मात्र कृपा से कुंडलिनी जाग्रत हो जाती है और साधक आगे बढ़ जाता है |इसी तरह से ईष्ट की प्रबलता भी साधक को अत्यधिक प्रभावित करती है |ईष्ट की ऊर्जा के आसपास संघनित होते ही परिवर्तन शुरू हो जाते है और साधक में उनके प्रवेश से बदलाव और उन्नति आने लगती है | 

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