Thursday 24 July 2014

निर्णय देने में असमर्थ हूँ

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 
सत्संगकी महिमा
किसी समय महर्षि वशिष्ठजी विश्वामित्रजीके आश्रम पर पधारे l विश्वामित्रजीने उनका स्वागत-सत्कार तो किया ही, आतिथ्यमें अपनी एक सहस्र वर्षकी तपस्याका फल भी अर्पित किया l कुछ समय के पश्चात् विश्वामित्रजी वशिष्ठजी के अतिथि हुए l वशिष्ठजीने भी उनका यथोचित सत्कार किया और उन्हें अपने आधी घड़ीके सत्संगका पुण्य अर्पित किया l परन्तु वशिष्ठजीके इस व्यवहारसे विश्वामित्रजीको क्षोभ हुआ l यद्यपि वे कुछ बोले नहीं, फिर भी उनके मुखपर आया रोषका भाव छिपा नहीं रहा l उस भावको लक्षित करके वशिष्ठजी बोले – ‘मैं देखता हूँ कि आपको अपनी सहस्र वर्षकी तपस्याके समान मेरा आधी घड़ीका सत्संग नहीं जान पड़ता l क्यों न हमलोग किसीसे निर्णय करा लें l’
दोनों ब्रहर्षि ठहरे, उनके विवादका निर्णय करनेका साहस कोई ऋषि-मुनि भी नहीं कर सकता था, नरेशोंकी तो चर्चा ही क्या l वे ब्रह्मलोक पहुँचे l परन्तु ब्रह्माजीने भी सोचा की इनमें से कोई रुष्ट होकर शाप दे देगा तो विपत्तिमें पड़ना होगा l उन्होंने कहा – ‘आपलोग भगवान् विष्णुके पास पधारें; क्योंकि सृष्टिके कार्यमें व्यस्त होनेके कारण मैं स्वस्थचित्तसे कोई निर्णय देने में असमर्थ हूँ l’
‘मैं आप दोनोंके चरणोंमें प्रणाम करता हूँ l तपस्या और सत्संगके महात्म्यका निर्णय वही कर सकता है, जो स्वयं इनमें लगा हो l मेरा तो इनसे परिचय ही नहीं l आपलोग तपोमूर्ति भगवान् शंकरसे पूछनेकी कृपा करें l’ भगवान् विष्णुने भी दोनों ऋषियों को यह कहकर विदा कर दिया l
शंकरजीने कहा – ‘जबसे मैंने हालाहल पान किया है, तबसे चितकी स्थिति निर्णायक बनने-जैसी नहीं रही है l शेषजी मस्तकपर पृथ्वी उठाये निरंतर तप करते रहते हैं और सहस्रमुखोंसे मुनिवृन्दोको सत्संगका लाभ देते रहते हैं l वे ही आपलोगोंका निर्णय कर सकते हैं l’
पाताल पहुँचनेपर दोनों महर्षियोंकी बात शेषजीने सुन ली और बोले – ‘आपमेंसे कोई अपने प्रभावसे इस पृथ्वीको कुछ क्षण अधरमें रोके रहे तो मेरा भार कम हो और मैं स्वस्थ होकर विचार करके निर्णय दूँ l’
‘मैं एक सहस्र वर्षके तपका फल अर्पित करता हूँ, धरा आकाशमें स्थित रहें l’ महर्षि विश्वामित्रने हाथमें जल लेकर संकल्प किया; किन्तु पृथ्वी तो हिली भी नहीं l
‘मैं आधी घडीके अपने सत्संगका पुण्य देता हूँ, पृथ्वी देवी कुछ क्षण गगनमें ही अवस्थित रहें l’ ब्रह्मर्षि वशिष्ठजीने संकल्प किया और पृथ्वी शेषजीके फणोंसे ऊपर उठकर निराधार स्थित हो गयीं l
अब निर्णय करने-करानेको कुछ रहा ही नहीं था l विश्वामित्रजीने वशिष्ठजीके चरण पकड़ लिये – ‘भगवन् ! आप सदासे महान् हैं l’

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