Thursday 10 July 2014

ज्ञान भक्ति की गंगा बहती

.सतसंग नहि कियों गफलत में उमर सारी खो दई । जी ।
हरी भजन न कीन्हो बातों में ऊमर सारी खो दई ।। जी ।। टेर ।।
बिन सतसंग जगत में प्राणी पशुओं से भी खोटा । जी ।
भार रूप धरनी पर रहवे पाप करे वे मोटा ।। जी ।। १ ।।
दियो न कछु भी दान हातसे लियो न हरी का नाम । जी ।
मर करके वो घोडा बनता मुख में पड़े लगाम ।। जी ।। २ ।।
उजला पहिरे कापड़ा रे पान सुपारी खाय । जी ।
नारायण के भजन बिना वो जमपुर बाँधा जाय ।। जी ।। ३ ।।
बड़े घरों की लाडली वा सत्संग में नहीं जाय । जी ।
मरकर के वो कुतिया बनती घर के डंडे खाय ।। जी ।। ४ ।।
झूठ कपट कर माया जोड़े ना खरचे न खाय । जी ।
मरकर के वो अजगर बनता पड़ा पड़ा दुःख पाय ।। जी ।। ५ ।।
सरवर माहीं न्हावे धोवे भीतर कुल्ला करता । जी ।
मरकर के वो मेढक बनकर टरक टरक करता ।। जी ।। ५ ।।
मानव तन अनमोल मिला है तनिक न वृथा गमाओ । जी ।
ज्ञान भक्ति की गंगा बहती सज्जन सब मिल न्हावो ।। जी ।। ६ ।।
सतसंग नहि कियों गफलत में उमर सारी खो दई । जी ।
हरी भजन न कीन्हो बातों में ऊमर सारी खो दई ।। टेर.....

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