Tuesday 29 July 2014

इसे धारण करने से शरीर स्वस्थ और मन शांत रहता !

एक बार देवर्षि नारद ने भगवान नारायण से
पूछा - दयानिधान! रुद्राक्ष को श्रेष्ठ
क्यों माना जाता है? इसकी क्या महिमा है? सभी के
लिए यह पूजनीय क्यों है? रुद्राक्ष की महिमा को आप
विस्तार से बताकर मेरी जिज्ञासा शांत करें।”
देवर्षि नारद की बात सुनकर भगवान् नारायण बोले - “हे
देवर्षि! प्राचीन समय में यही प्रश्न कार्तिकेय ने भगवान्
महादेव से पूछा था। तब उन्होंने जो कुछ बताया था,
वही मैं आपको बताता हूँ"
“एक बार पृथ्वी पर त्रिपुर नामक एक भयंकर दैत्य उत्पन्न
हो गया। वह बहुत बलशाली और पराक्रमी था। कोई
भी देवता उसे पराजित नहीं कर सका। तब ब्रह्मा, विष्णु
और इन्द्र आदि देवता भगवान शिव की शरण में गए और
उनसे रक्षा की प्रार्थना लगने लगे।
भगवान शिव के पास ‘अघोर’ नाम का एक दिव्य अस्त्र
है। वह अस्त्र बहुत विशाल और तेजयुक्त है। उसे सम्पूर्ण
देवताओं की आकृति माना जाता है। त्रिपुर का वध करने
के उद्देश्य से शिव ने नेत्र बंद करके अघोर अस्त्र
का चिंतन किया। अधिक समय तक नेत्र बंद रहने के कारण
उनके नेत्रों से जल की कुछ बूंदें निकलकर भूमि पर गिर गईं।
उन्हीं बूंदों से महान रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। फिर
भगवान शिव की आज्ञा से उन वृक्षों पर रुद्राक्ष
फलों के रूप में प्रकट हो गए।
ये रुद्राक्ष अड़तीस प्रकार के थे। इनमें कत्थई वाले बारह
प्रकार के रुद्राक्षों की सूर्य के नेत्रों से, श्वेतवर्ण के
सोलह प्रकार के रुद्राक्षों की चन्द्रमा के नेत्रों से
तथा कृष्ण वर्ण वाले दस प्रकार के
रुद्राक्षों की उत्पत्ति अग्नि के नेत्रों से मानी जाती है।
ये ही इनके अड़तीस भेद हैं।
ब्राह्मण को श्वेतवर्ण वाले रुद्राक्ष, क्षत्रिय
को रक्तवर्ण वाले रुद्राक्ष, वैश्य को मिश्रित रंग वाले
रुद्राक्ष और शूद्र को कृष्णवर्ण वाले रुद्राक्ष धारण
करने चाहिए। रुद्राक्ष धारण करने पर बड़ा पुण्य प्राप्त
होता है। जो मनुष्य अपने कण्ठ में बत्तीस, मस्तक पर
चालीस, दोनों कानों में छः-छः, दोनों हाथों में बारह-
बारह, दोनों भुजाओं में सोलह-सोलह, शिखा में एक और
वक्ष पर एक सौ आठ रुद्राक्षों को धारण करता है, वह
साक्षात भगवान नीलकण्ठ समझा जाता है। उसके
जीवन में सुख-शांति बनी रहती है। रुद्राक्ष धारण
करना भगवान शिव के दिव्य-ज्ञान को प्राप्त करने
का साधन है। सभी वर्ण के मनुष्य रुद्राक्ष धारण कर
सकते हैं। रुद्राक्ष धारण करने वाला मनुष्य समाज में
मान-सम्मान पाता है।
रुद्राक्ष के पचास या सत्ताईस मनकों की माला बनाकर
धारण करके जप करने से अनन्त फल की प्राप्ति होती है।
ग्रहण, संक्रांति, अमावस्या और
पूर्णमासी आदि पर्वों और पुण्य दिवसों पर रुद्राक्ष
अवश्य धारण किया करें। रुद्राक्ष धारण करने वाले के
लिए मांस-मदिरा आदि पदार्थों का सेवन वर्जित
होता है।”
हिंदू धर्म में सदियों से पूजा-पाठ, यज्ञ, हवन जैसे शुभ
कार्यो में रुद्राक्ष का प्रयोग किया जाता है। रुद्राक्ष
के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान पूर्ण नहीं होता। अब
तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के माध्यम से पूरी दुनिया में
रुद्राक्ष की गुणवत्ता साबित हो चुकी है। इसके अद्भुत
औषधीय गुण प्रयोगशाला में जांच के बाद सही साबित
हुए है। इसे धारण करने से शरीर स्वस्थ और मन शांत
रहता ! 

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