Monday 28 July 2014

कहत 'कबीर' सुनो भाई साधों

माल जिन्होंने जमा किया, बनजारे हारे जाते है ।। टेर ।।
भाई-बन्धु कुटुम्ब कबीले, दावा कर-कर खाते है ।
जभी मुसाफिर मारा जावे, कोई काम न आते है ।। १
सांई का रस्ता बिनु जाने, और राह भटकाते है ।
इन रस्तों के बीच मुसाफिर, अक्सर मारे जाते है ।। २
ऊँचे-नीचे महल बनावे, बैठे समय बिताते है ।
राम-नाम धन नहीं बटोरा, हाथ पसारे जाते है ।। ३
अगन पलीता राज दण्ड अरु, चोर लुँट ले जाते है ।
राम-नाम पर कभी न देता, माल जँवाई खाते है ।। ४
भाई-बंधू नाती उस दिन, सभी अलग हो जाते है ।
कहत 'कबीर' सुनो भाई साधों, अपने हाथ जलाते है ।। ५
माल जिन्होंने जमा किया, बनजारे हारे जाते है ।। टेर

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