Sunday 27 April 2014

ध्यान करके निर्वाण को पाना है

गौतम बुद्ध का मानना ये था कि संसार में ईश्वर नाम की कोई वस्तू नहीं है । और ये संसार का अस्तित्व भी कहीं नहीं है ये जो दिखाई देता है वो एक माया है । केवल विपर्यय ( धोखा ) । 
सब कुछ शून्य है ओर अंत में हमें शून्य में ही जाना है । 
इसी कारण शून्य में ही ध्यान करके निर्वाण को पाना है ।

समीक्षा :- अगर सब कुछ ही शून्य है तो फिर यह शून्य को जानने वाला भी शून्य के इलावा कोई दूसरा होना चाहिये । तो इसका अर्थ हुआ कि सब शून्य नहीं है ।
अगर सब शून्य है तो निर्वाण किसको मिलता है ? क्योंकि जैसे कोई अपने कंधे पर नहीं चढ़ सकता वैसै ही शून्य को शून्य नहीं जान सकता इलिये केवल शून्य नहीं है उससे अलग और भी कुछ है ।
तो बुद्ध भी शून्य नहीं थे । नहीं तो वो कुछ बोलते 
तो उनका बोला जाना लोगों ने सुना अगर वो शून्य होता तो शून्य ही उगलते 

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